सुप्रीम कोर्ट ने असम में अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने संबंधी नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी है।
पांच जजों की संविधान पीठ ने असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की सांविधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर आज फैसला सुनाया।
असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में इस धारा को एक संशोधन के माध्यम से संविधान मे शामिल किया गया था। फैसले में संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
फैसले के तहत अदालत ने असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च 1971 तक की समय सीमा रखी है।
4:1 के अनुपात से हुए इस फैसले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने बहुमत से फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस पर असहमति व्यक्त की।
इस फैसले के तहत प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया जबकि बहुमत से दिए गए इस फैसले में बेंच का कहना है कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है।
बहुमत के फैसले के तहत अदालत ने असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च 1971 तक की समय सीमा रखी है।
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर कोर्ट का कहना है कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है ।
पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले कपिल सिब्बल सहित अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और अन्य की दलीलें चार दिनों तक सुनीं थीं।
बताते चलें कि धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए करीब 17 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। वहीँ धारा 6ए को विशेष प्रावधान के रूप में असम समझौते के तहत संविधान के नागरिकता अधिनियम में शामिल लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक शामिल किया गया था।
इस प्रावधान के अनुसार पहली जनवरी 1966 या इसके बाद और 25 मार्च 1971 से पहले जो लोग बांग्लादेश सहित उल्लेखित इलाकों से असम आए हैं और यहां निवास कर रहे हैं उन्हें वर्ष 1985 में संशोधित नागरिकता कानून के तहत नागरिकता के लिए धारा-18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा।
इससे पहले एक हलफनामे के ज़रिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह भारत में विदेशियों के अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डाटा प्रदान करने में सक्षम नहीं है। इसके अपनी इस असमर्थता के लिए सरकान ने प्रवास गुप्त तरीके से होने का मुद्दा सामने रखा था।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को 7 दिसंबर को नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6 ए (2) के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाले प्रवासियों की संख्या और भारतीय क्षेत्र में अवैध प्रवास को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, पर डाटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
हलफनामे में के मुताबिक़ 2017- 2022 के मध्य 14,346 विदेशी नागरिकों को देश से निर्वासित किया गया। जबकि इस प्रावधान के तहत जनवरी 1966 से मार्च 1971 के मध्य असम में प्रवेश करने वाले 17,861 प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी गई। साथ ही इसमें उल्लेख किया गया है कि 1966-1971 के बीच विदेशी न्यायाधिकरणों के आदेश से 32,381 लोगों को विदेशी घोषित किया गया है।