डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘इंडियाज सन्स’ ओटीटी पर रिलीज हो गई है।ये डॉक्यूमेंट्री उन पुरुषों का जीवन संघर्ष को बयान करती है जो महिलाओं द्वारा झूठे मामलों में फंसा दिए गए।
दिल्ली के फिल्ममेकर्स दीपिका नारायण भारद्वाज, नीरज कुमार और शोनी कपूर की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘इंडियाज सन्स’ लगातार चर्चा में बनी हुई। दीपिका एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और निर्भया कांड के बाद बदले गए कानूनों के दुरुपयोग को लेकर लगातार काम कर रही हैं। आज भी उनके सोशल मीडिया पेज पर इस तरह की शिकायतों की लम्बी सूची देखी जा सकती है।
दीपिका इससे पहले दहेज उत्पीड़न कानून की धारा 498 ए के दुरुपयोग पर फिल्म ‘मारटियर्स ऑफ मैरिज’ बना चुकी हैं। जियो सिनेमा पर रिलीज उनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘इंडियाज सन्स’ को भी उन्होंने उसी तेवर तन्मयता के साथ बनाया है।
इंजीनियरिंग से पत्रकारिता में आने वाली दीपिका लैंगिक भेदभाव के मामलों में पुरुषों के पक्ष में आवाज उठाती रही हैं। उनका कहना है कि कानून को लैंगिक भेदभाव से ऊपर उठकर एक तटस्थ नजरिये से समाज की रक्षा करनी चाहिए।
एक इंटरव्यू के दौरान दीपिका बताती हैं कि ऐसा ही कुछ इन दिनों देश में बलात्कार के कानून को लेकर हो रहा है। अपनी फिल्म ‘इंडियाज सन्स’ में उन्होंने इसी सच को सामने लाने का प्रयास किया है।
ये फिल्म उन मामलों का खुलासा करती है जिनकी निर्भया मामले के बाद बदले गए कानून के नतीजे में भरमार देखने को मिली। इसके बाद से बलात्कार के मामलों के दर्ज होने में काफी तेज़ी देखी गई। इनमे से अधिकतर मामलों में आरोपियों पर गुनाह साबित ही नहीं हो पाया।
डॉक्यूमेंट्री ‘इंडियाज सन्स’ का ट्रिगर प्वाइंट के बारे में दीपिका उन किस्सों का हवाला देती हैं जिसमें एक गलत आरोप के कारण किसी का जीवन बर्बाद हो जाता है या कोई आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है।
गौरतलब है कि 2012 में होने वाले ‘निर्भया कांड’ के बाद बलात्कार और स्त्री उत्पीड़न को लेकर बने कानून के बाद अब किसी महिला का केवल इतना कहना देना भर काफी है कि उसका शोषण किया गया है।
दीपिका की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘इंडियाज सन्स’ इस मामले में उठाए गए अगले क़दम की तरह है। साल 2016 में ऐसे ही एक मामले में जस्टिस निवेदिता अनिल शर्मा का कहना था- ‘समय आ गया है कि ऐसे पुरुषों की मान मर्यादा को बहाल करने के भी कानून बने जिन्हें बलात्कार के झूठे केसों में फंसाया गया क्योंकि लग तो ऐसा ही रहा है कि सारे लोग बस महिलाओं के सम्मान की रक्षा में लगे हुए हैं।’
एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से पत्रकारिता में आने वाली दीपिका लैंगिक भेदभाव के मामलों में पुरुषों के पक्ष में शुरू से आवाज उठाती रही हैं। पुरुषों की वकालत करने वाली दीपिका का मानना है कि भारतीय कानूनों में पुरुषों के सम्मान के लिए कभी किसी ने आवाज नहीं उठाई। इस बारे में दीपिका कहती हैं कि कानून को लैंगिक भेदभाव से ऊपर उठकर एक तटस्थ नजरिये से समाज की रक्षा करनी चाहिए।