बांग्लादेश के एक जलवायु वैज्ञानिक ने दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन से मानव जीवन में छह महीने तक की कमी आ सकती है। अध्ययन ये भी बताता है कि इन बदलावों से महिलाऐं अधिक प्रभावित होंगी।
अध्ययन में पाया गया कि यदि वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो जीवन प्रत्याशा छह महीने कम हो सकती है। इसका सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं पर पड़ेगा, जिनके जीवन में 10 महीने तक खोने की आशंका है।
अध्ययन में पाया गया है कि विकासशील देशों में महिलाएं और व्यक्ति असमान रूप से प्रभावित हैं। हाल ही में पीएलओएस क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में 1940-2020 तक 190 देशों के औसत तापमान, वर्षा और जीवन प्रत्याशा डेटा का मूल्यांकन किया गया।
बांग्लादेश में शाहजलाल यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अमित रॉय ने कहा, “जलवायु परिवर्तन से अरबों लोगों की भलाई के लिए उत्पन्न वैश्विक खतरा इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है, जैसा कि इस अध्ययन से पता चला है।”
Climate change may reduce global life expectancy by up to six months on average, per research.
The study introduced a unique "composite climate change index," showing a direct link between temperature, rainfall, and life expectancy across 191 countries.https://t.co/PJ8PJrClQv pic.twitter.com/1EtTmKkJur
— The Weather Channel India (@weatherindia) January 21, 2024
अध्ययन से पता चलता है कि बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा चक्र से जीवन प्रत्याशा में औसतन छह महीने की कमी आ सकती है। इन मौतों में अप्रत्यक्ष प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और लू के कारण तथा अप्रत्यक्ष जिनमे मानसिक स्वास्थ्य समस्यायें आदि, दोनों ही का असर पड़ता है।
अध्ययन के एकमात्र लेखक, बांग्लादेश में शाह जलाल विश्वविद्यालय और अमरीका में द न्यू स्कूल फॉर सोशल रिसर्च से अमित राय ने 190 से अधिक देशों के 80 से अधिक वर्षों के तापमान और वर्षा डेटा का उपयोग किया।
अध्ययन में इसके लिए वैश्विक सूखे और फसल विनाश के कारण होने वाली भूख, मानसिक बीमारी और असामयिक मृत्यु को जिम्मेदार ठहराया गया है।
हालाँकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं पर पड़ेगा, जिनके जीवन में 10 महीने तक खोने की आशंका है।