सुंदरवन को एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच कहा जा सकता है। बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवाती तूफानों में सुंदरवन बड़ी भूमिका निभाते हैं। इनकी बदौलत तूफ़ान का प्रभाव और विनाश काफी कम हो जाता है।
प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण सुंदरवन को भारी नुकसान हुआ है। इस क्षति और हानि पर चर्चा करने के लिए भारत और बांग्लादेश के विशेषज्ञों की एक परिचर्चा आयोजित की गई। इसमें अनेक विशेषज्ञों ने वर्चुअल माध्यम से शिरकत की। इस दौरान इससे जुड़े कई तथ्य भी सामने आये।
सुंदरवन भारत और बांग्लादेश के लिये उतना ही महत्वपूर्ण जितना लैटिन अमेरिका के लिये अमेजॉन। इन दिनों सुंदरवन बदहाली का सामना कर रहा है। इसके लिए जरूरी है कि भारत और बांग्लादेश सुंदरवन को बचाने को लिए साथ काम करें।
भारत और बांग्लादेश की सीमा पर बसे सुंदरवन को बचाने के लिए दोनों देशों को रणनीति बनानी होगी। सुंदरबन के जंगल दुनिया में मैंग्रोव वनों के सबसे बड़े खंडों में से एक है।
विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक कवच कहा जाने वाला सुंदरवन कैसे बचे इस पर कई दशकों से मंथन चल रहा है, ताज़ा बैठक में भारत और बांग्लादेश को मिलकर एक ख़ास रणनीति पर काम करने का सुझाव दिया गया है।https://t.co/GHgAuJ0Ns3
— GaonConnection (@GaonConnection) September 25, 2023
सुंदरबन के संरक्षण के लिये बांग्लादेशी अर्थशास्त्री काजी खलीकुज्जमां अहमद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साथ आने की बात पर पर जोर देते हुए कहा है कि हमें वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को शामिल करना चाहिये। उनका कहना है कि बांग्लादेश और भारत, जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के लाभार्थी नहीं बल्कि भुक्तभोगी हैं।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ी ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र स्तर में हो रही वृद्धि से खतरा बढ़ रहा है। इसके अलावा झींगा पालन उद्योग, अवैध कटान, वन क्षेत्रों के अतिक्रमण तथा वन्यजीवों के अवैध शिकार के कारण मैंग्रोव वन खतरनाक दर से जैव विविधता खो रहे हैं।
वन को नुक्सान पहुँचाने में सबसे बड़ी भागीदारी वनों का अत्यधिक दोहन है। अवैध रूप से जंगलों की लकड़ी निकालना और स्थायी प्रबंधन पद्धतियों का न होना, क्षेत्र में वन संरक्षण से जुड़ी प्रमुख समस्याएं हैं। मैंग्रोव आंशिक रूप से खुलना जिले में आता है, जहां एक सरकारी कागज मिल भी मौजूद है।
ईंधन की लकड़ी के लिए आस पास की बड़ी आबादी इन्ही वनों पर निर्भर करती है। इसके अलावा पशु चारा, मछली, शंख, शहद और जंगली जानवर के साथ देसी दवाओं के लिए भी यहाँ के निवासी इन वनों पर निर्भर हैं।
मूल आवश्यकताओं के लिए सुंदरबन का दोहन सदियों से किया जाता रहा है लेकिन, बढ़ती जनसंख्या के दबाव ने इस दर को बहुत बढ़ा दिया है।