एक्सपर्ट मानते हैं कि अमरीका के प्रतिबंध अलग हैं और भारत के प्रतिबंध बिल्कुल अलग हैं.
अमरीका की डेलवेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप का प्रतिबंध दरअसल टिकटॉक पर अपने बिज़नेस को अमरीकी कंपनी को बेचने के लिए दबाव बनाने की रणनीति है.
प्रोफ़ेसर ख़ान कहते हैं, ‘अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का फ़ैसला भारत से अलग है. भारत ने पूर्ण प्रतिबंध लगाया है जबकि ट्रंप ने कंपनी की वापसी की गुंज़ाइश छोड़ी है. ट्रंप का आदेश कहता है कि टिकटॉक अगले पैंतालिस दिनों में यदि किसी अमरीकी कंपनी के मालिकाना हक़ में नहीं आती है तो उस पर प्रतिबंध लागू हो जाएंगे. अभी ये भी बहुत स्पष्ट नहीं है कि ये मालिकाना हक़ किस स्वरूप में होगा. क्या टिकटॉक की मूल कंपनी की हिस्सेदारी शून्य हो जाएगी या उसे 49 फ़ीसदी तक शेयर रखने की अनुमति होगी. ये भी स्पष्ट नहीं है कि टिकटॉक में सिर्फ़ एक ही अमरीकी कंपनी का निवेश होगा या एक से अधिक कंपनियां निवेश कर सकेंगी.’
प्रोफ़ेसर ख़ान कहते हैं, ‘माइक्रोसॉफ़्ट या गूगल जैसी अमरीकी तकनीकी कंपनियां टिकटॉक को ख़रीदना चाहेंगी लेकिन यदि बैंक ऑफ़ अमरीका या कोई अन्य वित्तीय कंपनी शेयर ख़रीदती है तो क्या होगा. टिकटॉक तो चाहेगी कि उसकी हिस्सेदारी बची रहे. यदि कोई गैर-तकनीकी कंपनी निवेश करती है तो हो सकता है कि ऑपरेशन टिकटॉक के ही हाथ में रहे.’
(Source:BBC News)