कुम्भ नगरी (प्रयागराज) गोवर्द्धनमण पूरी के पीठाधीश्वर श्रीमज्जगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महराज से गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अचानक ही मुलाकात की. मुलाकात के बाद योगी ने अपनी कोई भी प्रतिक्रिया तो नहींं दी लेकिन स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महराज ने अपनी इस मुलाकत के बारी में हुई चर्चा को साझा किया.
उन्होंने कहा कि जब से हम इस पद पर हैं, तबसे योगी से हमारा परिचय है. निश्चलानन्द सरस्वती ने कहा कि 25 वर्षों से, जब से हम इस पद पर हैं तब से योगी से परिचय है. होली के अवसर पर भी वृंदावन में मेरे पास बैठे थे और जब केवल सांसद थे, तब भी उज्जैन कुंभ में भी मेरे पास एक घंटा बैठे थे. गोरखपुर में भी कभी मैं गया था तब भी मेरे पास बैठे थे. उनसे हमारा पुराना परिचय है.
वह शिष्टाचार और अपनत्व के कारण मेरे पास आए थे. श्रीराम जन्म भूमि को लेकर मैंने कहा कि इस की आधारशिला जैसी होनी चाहिए वैसी नहीं है और समस्या का समाधान शीघ्र ही होना चाहिए. इसको लटकाने की आवश्यकता नहीं है. इससे आस्था पर आघात पहुंचती है. उन्होंने कहा कि हम इसी ढंग का प्रयास करेंगे और आपकी जो भावना है उसको पूर्ण रूप से स्थान देकर साकार करेंगे और आप को प्रसन्नता भी होगी.
अभी तक मैं विहिप और आरएसएस के मंच पर नहीं गया हूं. लेकिन मोहन भागवत भी तीन-चार बार आ चुके हैं. अशोक सिंघल भी मेरे पास 70 बार आ चुके हैं. अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है कि मैं मंच पर नहीं जाऊंगा. बकौल निश्चलानन्द, मुख्यमंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केस है. कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन कर कोई काम करने में सरकार असमर्थ होती है. इस समय जो प्रतिबंध है, न्यायालय में बार-बार तारीख बदली जाती है. पुरातत्व विभाग ने अटल जी के शासनकाल में जो खनन किया था, उस समय मंदिर के ही साक्ष्य मिले थे. पर हम ऐसा कदम उठाएंगे, जिससे राष्ट्र को निराशा नहीं होगी और आपको भी प्रसन्नता होगी. उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यहां के मुख्यमंत्री थे और अयोध्या दलबल के साथ कूच कर रहे थे. उस समय मुझे यह भी ध्यान है कि मैं पूरे पीठ के शंकराचार्य नहीं था.
उस समय सपा सरकार ने चुनार किले को बंद कर दिया था. उस समय वह लोग नहीं जा पाए थे. अयोध्या जाने के संबंध में उनसे कोई परामर्श नहीं लिया गया है. तोगड़िया मुझसे मिलने वाले हैं. विश्व हिंदू परिषद अलग से मुलाकात कर रही है. इस मामले पर अनुकूल परिस्थिति और अनुकूल बिंदु यह है कि देश में यथाशीघ्र यथास्थान मंदिर बनना चाहिए. दूसरी बात यह है कि जब उद्देश एक है तब घटक तीन क्यों है?
सद्भाव पूर्वक सम्मान के माध्यम से कोई सैद्धांतिक निर्णय लेने का प्रयास करना चाहिए. अलग-अलग खिचड़ी पकाने की आवश्यकता क्यों है, एक पक्ष आशा की ओर एक पक्ष निराशा की और क्यों है?आज कल संत का मतलब हो गया है कि जितनी पार्टियां, उनके उतने संत है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा के अलग-अलग संत हैं. जो हाईकमान का संत होगा, उनकी ही बात सुनी जायेगी. मेरे स्वभाव से सभी लोग परिचित हैं. मेरी वाणी पर लोभ, भय, कोरी भावुकता, अभिवेक का साम्राज्य नहीं है. इसलिए मेरी वाणी प्रहार करती है. इसलिए मुझे जो भी कहना है, वह काल भी आ जाए, तब भी मैं कहता हूं. शंकराचार्य ने नेताओं के आचरण पर कहा कि हाथी से हल नहीं चलवाया जाता है. नेता आज कुछ और कल कुछ और बोलेंगे. इसलिए नेताओं की समीक्षा उन्हीं के पार्टी उन्हीं का लोग ही कर सकते हैं. मेरे पास परम धर्म संसद के मुक्तेश्वरानन्द जी भी आये.