नई दिल्ली, रैंजमवेयर अटैक की जिम्मेदारी अप्रत्यक्ष रूप से माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम पर. दुनिया के सबसे बड़े रैंजमवयेर अटैक के बाद एकस्पर्ट्स अब माइक्रोसॉफ्ट पर भी सवाल उठा रहे हैं. कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े रैंजमवेयर अटैक की जिम्मेदारी अप्रत्यक्ष रूप से माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम है. क्योंकि कंपनी टियर्ड सपोर्ट सिस्टम देती है. इस अटैक के मुख्या टार्गेट Windows XP और Windows 7 के कंप्यूटर्स थे. Windows 7 कंप्यूटर्स को अपडेट मिलते हैं, लेकिन XP को अप्रैल 2014 से अपडेट मिलने बंद हो गए हैं. हालांकि अभी पैसे देकर कस्टमर अपडेट लिए जा सकते हैं.
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसके लिए अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी जिम्मेदार है. क्योंकि उसके ही हैकिंग टूल लीक होने के बाद ऐसा हुआ है. हालांकि इसपर यह दलील दी जा रही है कि अगर Windows में पहले ही जरूरी अपडेट दे दिए गए होते तो शायद इस बड़े अटैक से बचा जा सकता था.माइक्रोसॉफ्ट सॉफ्टवेयर अपग्रेड की दूसरी समस्या ये है कि ये हार्डवेयर के आगे निकल जाते हैं. यानी 2007 में बेचा गया कंप्यूटर Windows 10 पर नहीं काम कर सकता और लाखों ऐसे कंप्यूटर्स हैं जो अभी भी यूज हो रहे हैं. और यही वजह है कि माइक्रोसॉफ्ट की लाख कोशिशों के बावजूद अभी भी मार्केट शेयर के मामले में Windows 8.1 के बराबर ही यूजर्स हैं.
अगर बात भारत की करें तो कस्टमर्स हर दो साल पर कंप्यूटर नहीं बदलते हैं. 2007 से पुराने कंप्यूटर्स अभी भी चलन में हैं. इसलिए इनपर Windows 10 चलने का सवाल ही नहीं उठता. कई यूजर्स की समस्या ये है कि वो Windows 10 डालते हैं तो उनका कंप्यूटर स्लो हो जाता है.
उदाहरण के तौर पर एंड्रॉयड में iOS के मुकाबले ज्यादा हैकिंग की घटनाएं होती हैं. गूगल अपने एंड्रॉयड का अपडेट सभी एंड्रॉयड स्मार्टफोन में नहीं देता है. यहां तक कि 2014 में खरीदे गए स्मार्टफोन अभी भी पुराने ओएस पर काम कर रहे हैं. ऐसे में हैकिंग के लिए ये हैकर्स के लिए सॉफ्ट टार्गेट का काम करते हैं.
लेकिन अगर आप iOS की बात करें तो इसके अपडेट सभी Apple डिवाइस के लिए होते हैं . चाहे वो इस साल लॉन्च हुए हैं या फिर चार साल पहले. ऐसे मे अपडेटेड होने की वजह से यह हैकर्स की जद से कमोबेश दूर रहते हैं.
हालांकि माइक्रोसॉफ्ट ने इस अटैक के बाद Windows XP के लिए भी सिक्योरिटी पैच जारी किया है. चूंकि कंपनी इसका अपडेट बंद कर चुकी है इसलिए माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से यह बड़ा कदम माना जा सकता है. लेकिन फिर भी माइक्रोसॉफ्ट पर सवाल तो उठेंगे ही.