लखनऊ : सीएम योगी की पहली कैबिनेट, किसानों का कर्ज माफ कर पूरा होगा पीएम का वादा विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ करने का बड़ा वादा किया था. Yogi
इस वादे के बाद राज्य में बीजेपी की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया गया. अब प्रदेश में लोगों को इंतजार सीएम योगी की पहली कैबिनेट का है जहां राज्य के किसानों का कर्ज माफ करने की पहल की जा सके.
हालांकि प्रधानमंत्री के इस वादे को विपक्षी दल एक और जुमला करार दे रहे हैं लेकिन केन्द्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के सामने चुनौती इस वादे को पूरा करने से सरकारी खजाने पर पढ़ने वाले बोझ को संभालने की है.
साथ ही उत्तर प्रदेश के किसानों से किए वादे के बाद देश के अन्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब अपने किसानों का कर्ज माफ करने के लिए केन्द्र से गुहार लगा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का 27 फीसदी योगदान रहता है. लेकिन राज्य में सहकारी बैंक और सहकारी समितियों द्वारा कम कर्ज किसानों को दिया जाता है.
सिर्फ इसी कर्ज को माफ करने का अधिकार राज्य सरकार के पास रहता है. वहीं, राज्य में अधिकांश किसानों का कर्ज राष्ट्रीय बैंकों से होता है जिसका कर्ज माफ करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास होता है. लिहाजा, इन चुनावों में पीएम मोदी के कर्ज माफी के वादे को पूरा करने के लिए सरकारी बैंकों को अपना कर्ज छोड़ना होगा.
यूपी के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का कहना है कि राज्य में किसानों की कर्जमाफी को लेकर तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं. शाही के मुताबिक बीजेपी के संकल्प पत्र में ये बड़ा मुद्दा है और किसानों से जुड़ी जो बाते इस संकल्प पत्र में हैं उसे राज्य सरकार लागू करेगी.
गौरतलब है कि राज्य सरकार के पास किसानों का कर्ज माफ करने के लिए फिलहाल 2-3 विकल्प हैं और मंगलवार को होने वाली पहली कैबिनेट में इन विकल्पों के आधार पर फैसला लिया जाएगा.
राज्य में में 2 करोड़ 33 लाख सीमांत और लघु किसान हैं. इसके अलावा लगभग 2 करोड़ छोटे किसान भी हैं. इसमें से राज्य सरकार ने 1.5 करोड़ ऐसे किसानों की सूची तैयार कर ली है जिनका कर्ज राज्य के सहकारी बैंक और सहकारी समितियों के पास है.
राज्य सरकार को केन्द्र से भरोसा मिलने के बाद अब उसे इस कर्ज को माफ करने के लिए केन्द्र सरकार से वित्तीय सहायता की जरूरत पड़ेगी जिससे वह राज्य के खजाने पर पड़ने वाले बोझ को कम कर सके.
राज्य में 2014 तक किसानों का लगभग 75,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. इसमें महज 8,000 करोड़ रुपये का कर्ज सहकारी बैंक और समितियों द्वारा दिया गया है और बाकी कर्ज राष्ट्रीय बैंकों द्वारा दिया गया है.
वहीं राज्य की सत्ता से बाहर जा रही समाजवादी पार्टी राज्य के खजाने से 2012 तक के 50,000 रुपये के किसान कर्ज को माफ कर चुकी है. इस फैसले से राज्य की सरकार पर प्रति वर्ष 1,650 करोड़ का बोझ पड़ता है.
गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख अरुनधती भट्टाचार्या ने प्रदेश में किसानों के कर्ज को माफ करने के संबंध कह चुकी हैं कि ऐसे चुनावी वादों से देश में क्रेडिट अनुशाषन खराब होता है.
अरुनधती के मुताबिक जिन किसानों को इसका फायदा मिलेगा वह नए कर्ज की माफी के लिए भी अगले चुनाव में किसी राजनीतिक दल के भरोसे बैठे रहेंगे.
चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सत्ता पर काबिज होने वाले राजनीतिक दल सरकार के खजाने से पैसे अदा करते हैं. इसके बावजूद देश के बैंकों के लिए पूरी प्रक्रिया एक गंभीर चुनौती बन जाती है.
बैंकों से नया कर्ज लेने वाले किसान पहले से आश्वस्त रहते हैं कि उन्हें इस कर्ज पर भी माफी मिल जाएगी. वहीं किसानों को कर्ज देना बैंकों के लिए सिर्फ एक व्यर्थ प्रक्रिया बनकर रह जाती है क्योंकि उससे कर्ज लेने वाले किसानों को बस चुनाव का इंतजार रहता है कि कोई राजनीतिक दल उनसे कर्ज माफी का वादा कर ले.