तुर्की की मुद्रा लीरा में ऐतिहासिक गिरावट जारी है. सोमवार को ही लीरा में डॉलर की तुलना में पाँच फ़ीसदी की गिरावट आई थी. गुरुवार को ये चार फ़ीसदी और टूटी और शुक्रवार को भी ये दौर जारी रहा. कुल मिलाकर हफ्ते भर में लीरा 16 फ़ीसदी लुढ़क गई.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने तुर्की के स्टील और एल्यूमीनियम पर आयात शुल्क बढ़ाकर दोगुना कर दिया है. तुर्की की मुद्रा लीरा में जारी गिरावट को ट्रंप के इस फ़ैसले से और धक्का लगेगा.
ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा है, ”हमारे मज़बूत डॉलर के तुलना में उनकी मुद्रा कमज़ोर है. अमरीका और तुर्की के संबंध अभी ठीक नहीं हैं.”
तुर्की राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा है कि विदेशी ताक़तों के कारण उनकी मुद्रा में गिरावट जारी है. तुर्की ने अमरीका पर पलटवार की चेतावनी दी है.
अर्दोआन ने अपने भाषण में कहा है, ”अगर उनके पास डॉलर है तो हमारे पास लोग हैं, हमारे पास अपने अधिकार हैं और हमारे पास अल्लाह हैं.”
विश्लेषकों का मानना है कि अर्दोआन के ऐसे बयान से लीरा में सुधार नहीं होगा, बल्कि हालात और ख़राब होंगे. ट्रंप के ट्वीट के बाद अर्दोआन ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन को फ़ोन मिलाया और बात की. रूस की तरफ़ से बयान आया है कि दोनों नेताओं ने अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर बात की है.
आख़िर तुर्की के लीरा की ऐसी हालत क्यों हो गई है?
लीरा की मजबूती हमेशा से उत्सहाजनक रही है फिर ऐसा क्यों हो रहा है? कहा जाता है कि तुर्की की जो भौगोलिक स्थिति है उससे किसी भी देश को ईर्ष्या हो जाए, क्योंकि वो मध्य-पूर्व और यूरोप दोनों के बाज़ार के क़रीब है. तो समस्या कहां है?
इसमें तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन की भूमिका क्या है, जो दावा करते हैं कि उनके 15 साल के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था का कायापलट हो गया है. हम आपको बता रहे हैं तुर्की की अर्थव्यवस्था क्यों संकट में है-
अभी लीरा का शुमार दुनिया की वैसी मुद्रा में है जिसके दुर्दिन ठीक होने के नाम ही नहीं ले रहे. इस साल लीरा में अब तक 40 फ़ीसदी की गिरावट आई है. यह गिरावट लंबी अवधि से जारी है. पांच साल पहले दो लीरा देकर एक अमरीकी डॉलर ख़रीदा जा सकता था, लेकिन अब एक डॉलर के लिए 6.50 लीरा देने पड़ रहे हैं.
लीरा में गिरावट की कई वजहें हैं. पिछले कई हफ़्तों से तुर्की का अमरीका से विवाद बढ़ता जा रहा है. ऐसा तब है जब तुर्की पिछले 60 सालों से ज़्यादा समय से नैटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) का सदस्य है.
अमरीकी विदेश मंत्रालय ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए हैं. तुर्की ने अमरीका के एंड्र्यू ब्रुसन नाम के एक पादरी को अक्टूबर 2016 में गिरफ़्तार कर लिया था. एंड्र्यू दो सालों तक तुर्की की जेल में रहे. एंड्रूयू को अब भी तुर्की ने छोड़ा नहीं है.
ट्रंप प्रशासन तुर्की के इस क़दम से काफ़ी ख़फ़ा है और आर्थिक प्रतिबंध की एक वजह ये भी बताई जा रही है. अमरीकी प्रतिबंध से तुर्की के बाज़ार पर कई प्रतिकूल असर पड़े हैं. इस हफ़्ते दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन मसले सुलझ नहीं पाए.
क्या कलह की जड़ केवल पादरी?
नहीं. मसला केवल पादरी का गिरफ़्तार होना नहीं है. तुर्की को छोटी अवधि वाले विदेशी फंड का लाभ मिलता रहा है. ऐसा यूरोप और अमरीका की मौद्रिक नीति में उठापटक के कारण अधिक रिटर्न की चाहत में निवेशकों द्वारा तुर्की के उभरते बाज़ार में पैसे लगाने से होता था.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की को विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों से व्यापक पैमाने पर संपत्ति ख़रीद स्कीम के तहत फ़ायदा मिलता रहा है. लेकिन हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आई है. अमरीका और यूरोज़ोन का तुर्की को लेकर रवैया बदला है. तुर्की में ऐसे निवेश से आने वाले पैसे अब ना के बराबर हो गए हैं.
गुरुवार को जारी एबीएन एमरो की एक रिपोर्ट में निवेशकों ने चिंता जताई है कि तुर्की वार्षिक विदेशी फंड 218 अरब डॉलर नहीं जुटा पाएगा. इसमें तुर्की की कंपनियां भी शामिल होती हैं जिन्हें विदेशी मुद्रा की एक निश्चित राशि रखनी होती है. तुर्की के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी लगातार बढ़ रही है.
ज़्यादातर निवेशकों का कहना है कि तुर्की की सरकार देश में कम होते उपभोग और निर्माण आधारित अर्थव्यवस्था में आई मंदी को नियंत्रित करने के लिए कोई क़दम उठाए. तुर्की का चालू खाता घाटा भी बढ़कर उसकी जीडीपी की पांच फ़ीसदी से ऊपर चला गया है.
डर है कि अर्थव्यवस्था में आई मंदी से महंगाई भी बढ़ेगी, जो अभी 15 फ़ीसदी से ऊपर है. ब्याज दर बढ़ाकर महंगाई और लीरा को दुरुस्त करने की बात की जा रही है. हाल के वर्षों में तुर्की की कंपनियों पर डॉलर और यूरो के क़र्ज़ बढ़े हैं.
केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार तुर्की की ग़ैर-वित्तीय कंपनियों की निर्भरता विदेशी मुद्रा पर बढ़ी है. इनके पास 200 अरब डॉलर से ज़्यादा विदेशी मुद्रा हैं. केवल अगले 12 महीनों में निजी ग़ैर-वित्तीय संस्थानों को 66 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा चुकानी है. तुर्की के बैंकों में यह आंकड़ा 76 अरब डॉलर है.
आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल पाशा के बाद अर्दोआन को तुर्की का सबसे ताक़तवर शासक माना जाता है. अर्दोआन इस बात से सहमत नहीं हैं कि अर्थव्यवस्था को फिर से संतुलित करने की ज़रूरत है.
2016 में तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद से अर्दोआन तुर्की की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. तुर्की के बैंकों पास इतनी विदेशी मुद्रा नहीं है कि वो असंतुलित बाज़ार को काबू में करने के लिए कोई क़दम उठाए.
तुर्की में सत्ता का केंद्रीकरण और अर्थव्यवस्था
2016 में नाकाम तख्तापलट के बाद से अर्दोआन ने सत्ता का केंद्रीकरण कर लिया है. अब वो हर फ़ैसला ख़ुद लेते हैं. पिछले साल उन्होंने एक जनमत संग्रह कराया था जिसमें राष्ट्रपति शासन प्रणाली को मान्यता दिलाई थी.
इसी साल जून महीने में अर्दोआन ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत भी दर्ज की. अर्दोआन ने केंद्रीय बैंक के स्वतंत्र रूप से फ़ैसले लेने की क्षमता को भी अपने नियंत्रण में ले लिया है.
चुनाव में जीत के बाद अर्दोआन ने अपने दामाद को वित्त मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दे दी है. अर्दोआन के दामाद पूर्व बिज़नेस एग्जेक्युटिव रहे हैं. लीरा में जारी गिरावट से साफ़ है ससुर और दामाद की नीतियां अर्थव्यवस्था में फिट नहीं बैठ रही हैं.