इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राजिऊन
मशहूर शायर राहत इंदौरी को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया है. उनका दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार को निधन हो गया. वे कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे.
मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.
ये शेर राहत इंदौरी का है. कोरोना ने हमसे एक जिंदा दिल शायर छीन लिया.
हाथ खाली है तेरे शहर से जाते-जाते, जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है , उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते-जाते.
राहत इंदौरी हमारे बीच नहीं हैं. कुछ हिंदुस्तान का वह पुरख़ुलूस मिज़ाज फीका पड़ गया है जिसमें हर मुसीबत का सामना करने का बेलौस जज़्बा है.
‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है’
‘सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.’
राहत इंदौरी के न रहने से कुछ उर्दू शायरी फीकी पड़ गई है, कुछ इंदौर फीका पड़ गया है
‘उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर–मंतर सब, चाक़ू–वाक़ू, छुरियां–वुरियां, ख़ंजर–वंजर सब‘
‘जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे–रूठे हैं, चादर–वादर, तकिया–वकिया, बिस्तर–विस्तर सब‘
‘मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है, फीके पड़ गए कपड़े–वपड़े, ज़ेवर–वेवर सब‘
‘आख़िर मैं किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते हैं, कश्ती–वश्ती, दरिया–वरिया लंगर–वंगर सब‘