क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा रंग भी है जो इंसान की आंखों ने आज तक नहीं देखा गया है। कुदरत के ख़ज़ाने में छिपे एक ऐसे ही रंग का पता लगाया है कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिकों ने।
इन वैज्ञानिकों द्वारा पहचाने गए इस रंग को ओलो (Olo) नाम दिया गया है। इस रंग के अभी तक सामने न आ पाने का बड़ा कारण यह है कि यह रंग सामान्य दृश्य क्षमता की सीमाओं से परे है।
“ओलो” रंग को कुदरती रौशनी में देखना मुमकिन नहीं मगर यह एक ऐसा रंग है जिसे मानव आंखों के रेटिना को विशेष रूप से उत्तेजित करके देखा जा सकता है।
यह शोध एक प्रयोग के बाद किया गया है जिसमें अमरीका में शोधकर्ताओं ने अपनी आँखों में लेजर पल्स फायर किए थे।वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस नए रंग की खोज के साथ दावा किया है इसे पहले किसी इंसान ने नहीं देखा है।
यह रंग गहरा नीला-हरा होने के साथ इस रंग में एक ख़ास चमक भी शामिल है। जो अभी तक इंसानी आँखों से पोशीदा रहा। दरअसल इस रंग को प्राकृतिक प्रकाश में देख पाना संभव नहीं है।
रेटिना में शंकु कोशिकाएँ शामिल हैं, जो रंग को समझने के लिए जिम्मेदार कोशिकाएँ हैं। आँख में तीन प्रकार की शंकु कोशिकाएँ होती हैं – S, L और M – और प्रत्येक क्रमशः नीले, लाल और हरे रंग की अलग-अलग तरंग दैर्ध्य के प्रति संवेदनशील होती है।
शोध पत्र के अनुसार, सामान्य दृष्टि में, “कोई भी प्रकाश जो M शंकु कोशिका को उत्तेजित करता है, उसे अपने पड़ोसी L और/या S शंकु को भी उत्तेजित करना चाहिए”, क्योंकि इसका कार्य उनके साथ ओवरलैप होता है।
यह रंग “ओलो” बाइनरी कोड 010 से लिया गया है, जिसका अर्थ है कि केवल मध्यम तरंगदैर्ध्य कोन (M कोन) को उत्तेजित किया गया है।ओलो रंग की एक विशेषता यह भी है कि इसकी तुलना किसी अन्य रंग से नहीं की जा सकती है।
वैज्ञानिकों ने जब मानव आंखों के रेटिना को लेजर तकनीक से उत्तेजित किया तब उन्हें यह नया रंग नज़र आया। इस रंग का नाम भी इसी तथ्य पर आधारित है, क्योंकि यह बाइनरी कोड 010 से लिया गया है, जो दर्शाता है कि केवल मध्यम तरंगदैर्ध्य कोन उत्तेजित हुए हैं।
जहाँ एक ओर इस रंग का खोजै जाना इंसानी सक्षमताओं को चुनौती देता है वहीँ इस खोज से यह भी पता चलता है कि मानव आंखें केवल एक सीमित रंग स्पेक्ट्रम को ही देख सकती हैं। इस रंग को लेकर कुछ विशेषज्ञों का कहना है इसका अस्तित्व विवाद के रस्ते भी खोलता है।
शुक्रवार को साइंस एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों को अध्ययन के सह-लेखक, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रेन एनजी ने उल्लेखनीय बताया है। प्रोफ़ेसर एनजी ने स्वीकार किया कि हालांकि ओलो को देखना “निश्चित रूप से तकनीकी रूप से बहुत कठिन” है, लेकिन टीम यह देखने के लिए निष्कर्षों का अध्ययन कर रही है कि रंग अंधे लोगों के लिए इसका संभावित रूप से क्या मतलब हो सकता है, जिन्हें कुछ रंगों के बीच अंतर करना मुश्किल लगता है।