सप्ताह में एक दिन बिना प्रेस किये कपड़े पहनने के पीछे कारण अगर संरक्षण है तो वाक़ई क़ाबिले तारीफ होने के साथ सुन्दर भी कहलाएगा।
जी हां! क्लाइमेंट चेंज से निपटने के लिए यह इस छोटी सी कोशिश की शुरुआत की है सीएसआईआर के वैज्ञानिक और कर्मचारियों ने। इस मिशन को नाम दिया गया है- ‘डब्लूएएच मंडे अभियान’ या ‘रिंगकल अच्छे हैं’।
सीएसआईआर का स्टाफ जलवायु परिवर्तन नियंत्रण की खातिर सप्ताह के पहले दिन की शुरुआत बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहन कर करने की कोशिश कर रहा हैं। ‘रिंगकल अच्छे हैं’ अभियान की शुरुआत एक मई से 15 मई तक चलने वाले स्वच्छता पखवाड़े के तहत की गई है।
इस मिशन की कामयाबी के परिणाम सवरूप एक साल में 4,79,419.2 किलो कार्बन का उत्सर्जन रोकने में सफलता मिलेगी।
सीएसआईआर की पहली महिला महानिदेशक डॉक्टर एन कलैसेल्वी इस मिशन को एक सांकेतिक लड़ाई बताते हुए कहती हैं कि डब्लूएएच मंडे उर्जा साक्षरता के बड़े अभियान का एक हिस्सा है। उनके मुताबिक़ सोमवार को बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहन कर सीएसआईआर ने इस दिशा में अपना योगदान देने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि एक जोड़ी कपड़े को प्रेस करने से 200 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन होता है। ऐसे में एक आदमी एक दिन बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहन कर 200 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को कम कर सकता है।
बताते चलें कि सीएसआईआर ने पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी क्लाइमेट घड़ी दिल्ली के रफी मार्ग स्थित अपने दफ्तर में लगाई है।
देशभर में सीएसआईआर की 37 प्रयोगशालाएं हैं। इनमें 3521 वैज्ञानिक तथा 4162 तकनीकी और सहायक कर्मचारी हैं। अनुमान के मुताबिक़ ये वैज्ञानिक और कर्मचारी अगर सप्ताह में एक दिन बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहनेंगे तो वे एक दिन में 1536.6 किलो, एक सप्ताह में 10,756.2 किलो, एक महीने में 46,098 किलो और साल में 4,79,419.2 किलो कार्बन का उत्सर्जन रोक सकते हैं।