सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 6 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया था। बैंक ने अभी तक चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया नहीं कराई है। सोमवार को एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर और समय मांगा है जबकि एसबीआई की याचिका को अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया है।
इलेक्टोरल बॉन्ड से किस पार्टी को अब तक कितना चंदा मिला और इलेक्टोरल बॉन्ड कैश करने की तिथि आदि की पूरी जानकारी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक बताया था और इस योजना को सूचना के अधिकार का उल्लंघन कहा।
बैंक एम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीईएफआई) ने पिछले दिन कोलकाता में जारी एक बयान में यह आरोप लगाया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और उसके कर्मियों का इस्तेमाल “सत्तारूढ़ ताकतों के संकीर्ण राजनीतिक हित” के लिए किया जा रहा है, जिसका उन्होंने विरोध किया।
बैंक कर्मचारी ट्रेड यूनियन ने 6 मार्च को अपनी मांग में कहा कि
भारतीय स्टेट बैंक को चुनाव आयोग को चुनावी बांड योजना में योगदानकर्ताओं के नामों का खुलासा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करना चाहिए।
#ElectoralBonds: #SBI should follow #SupremeCourt deadline, says trade union Bank Employees Federation of India—which is today, 6 March. The scheme was annulled 15 February. #2024LokSabhaElection https://t.co/3OuUlX8bvK
— National Herald (@NH_India) March 6, 2024
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वे इस जानकारी को 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करें। डेडलाइन खत्म होने के बावजूद अभी तक एसबीआई ने चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी नहीं दी और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जानकारी देने के लिए 30 जून तक का समय मांगा है। अपनी याचिका में एसबीआई ने कहा है कि जानकारी निकालने में समय लगेगा, इसलिए उन्हें और समय दिया जाए।
केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को 2 जनवरी 2018 को नोटिफाई किया था। इसमें राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए कोई भी व्यक्ति अकेले या किसी के साथ मिलकर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है। राजनीतिक पार्टी के दान दिए जाने वाले ये इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई की किसी भी चयनित शाखा से खरीदे जा सकते थे।
चंदे के लिए बॉन्ड एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकते हैं। बॉन्ड मिलने के 15 दिनों के भीतर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग से वेरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।
बाद में इस योजना को लेकर आरोप लगने लगे कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान जाहिर नहीं की जाती और यह योजना चुनाव में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकती है।
साथ ही ये आरोप भी लगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत बड़े कार्पोरेट घराने अपनी पहचान छुपाकर किसी भी राजनीतिक पार्टी को जितना चाहे चंदा दे सकते हैं।
गौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई बैंक द्वारा ही जारी किया जाता था, यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई बैंक को जानकारी देने के लिए 6 मार्च की डेडलाइन दी थी।