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नई दिल्ली। पितृपक्ष शुक्रवार से शुरु हो रहा है। 17 सितंबर को प्रतिपदा का तर्पण एवं श्राद्ध होगा। जबकि, 30 सितंबर को पितृमोक्षनी अमावस्या के साथ ही पितृपक्ष का समापन हो जायेगा। इस बार पितृपक्ष 16 दिनों की जगह 15 दिनों के होंगे। पंडितों के मुताबिक पितृपक्ष में पंचमी और षष्ठी तिथि एक साथ होने के कारण एक दिन की कमी आयी है। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि तिथियों के क्षय होने व बढ़ने के कारण इस तरह का बदलाव कभी-कभी होता रहता है।
धर्म शास्त्रों में पितृपक्ष को लेकर मान्यता है कि इन दिनों पूर्वज धरती पर आते हैं। पितृपक्ष में नदी, तालाब एवं पोखरों में पितरों की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। यह परंपरा काफी समय से चल आ रहा है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान तर्पण नहीं करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है। मान्यता है कि जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में श्राद्ध करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति संन्यासी का श्राद्ध करता है, तो उसे द्वादशी तिथि के दिन ही करना चाहिए। कुत्ता, सर्प आदि के काटने से हुई अकाल मृत्यु या ब्रह्माणघाती व्यक्ति का श्राद्ध चौदस तिथि में करनी चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो ऐसे लोग अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए। पितृपक्ष में इसका काफी महत्व है। पितृपक्ष में दान का विशेष महत्व बताया गया है।
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