नासा के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के माध्यम से पौधों के जीवन चक्र और बदलते मौसम के प्रभावों का विश्लेषण किया जा सकेगा। नासा का अध्ययन बताता है कि मौसमी फूलों के रंगों की मदद से किस तरह से हवाई और अंतरिक्ष आधारित उपकरण जलवायु परिवर्तनों पर नजर रखने में सहायक हो सकते हैं।
इन वैज्ञानिकों ने जंगली फूलों के रंगों के जरिए जलवायु पर नजर रखने की नई तकनीक का विकास किया है। यह तकनीक पर्यावरण शोधकर्ताओं के साथ किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है।
नासा की यह तकनीक फूलों पर निर्भर फसलों की खेती करने वाले किसानों के लिए बेहद मददगार साबित हो सकती है। वैज्ञानिकों ने इस शोध के माध्यम से दक्षिणी कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला की ओर से विकसित तकनीक की मदद से हजारों एकड़ क्षेत्र का सर्वेक्षण किया।
नासा के शोध से पता चला है कि फूलों में इंसानी आँखों से ज़्यादा कुछ है। कैलिफ़ोर्निया में जंगली फूलों के हाल ही में किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि कैसे विमान और अंतरिक्ष आधारित उपकरण मौसमी फूलों के चक्रों को ट्रैक करने के लिए रंग का उपयोग कर सकते हैं।
पहली बार वनस्पति पर लम्बे समय की निगरानी के लिए इस उपकरण का उपयोग किया गया। सर्वेक्षण के दौरान इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर टूल द्वारा परिदृश्य को सैकड़ों प्रकाश तरंग दैर्ध्य में मापा गया। इसे अलग-अलग महीनों में फूलों के खिलने और उनकी बढ़ती उम्र की प्रक्रिया के हवाले से रिकॉर्ड किया गया।
वैज्ञानिक इसके लिए पौधों के जीवन चक्र और बदलते मौसम के बीच के संबंधों का गहराई से अध्ययन कर रहे हैं, अध्ययन की इस प्रक्रिया को वनस्पति फेनोलॉजी के नाम से जाना जाता है। जिसके तहत यह जाने का प्रयास किया जाता है कि बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न से पारिस्थितिकी तंत्र में किस प्रकार का बदलाव हो रहा है।
अध्ययन से होने वाले खुलासे से पता चला कि फसलों से लेकर कैक्टस तक कई पौधों की प्रजातियों के फूलने की प्रक्रिया में तापमान सहित दिन के उजाले और बारिश की मात्रा के उतार-चढ़ाव का असर पड़ता है।
शोध के लिए फूलों के रंगों को समूहों में वर्गीकृत किया गया। इनमे पीले, नारंगी और लाल रंगों से जुड़े कैरोटीनॉयड जबकि बीटालेन व गहरे लाल, बैंगनी और नीले रंगों के लिए जिम्मेदार एंथोसायनिन। इन रंगों के स्पेक्ट्रल पैटर्न का विश्लेषण करके वैज्ञानिकों ने पौधों की पहचान की। इससे मिलने वाली जानकारी से पता चला कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन कैसा रुख अपनाएगा।
बताते चलें कि नासा पिछले 45 वर्षों में इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर तकनीक को लगातार उन्नत कर रहा है। इस तकनीक से न केवल पृथ्वी, बल्कि अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं का भी सर्वेक्षण किया जा सकता है।