इस्लाम परिवार नियोजन की अवधारणा का विरोधी नहीं है ये बात पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने अपने बयान में कही। उन्होंने आबादी के लिहाज से मुसलमानों द्वारा हिंदुओं को पीछे छोड़ने जैसी बातों को दुष्प्रचार बताया। एसवाई कुरैशी ने ये बयान अपनी किताब ‘द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ पर परिचर्चा के दौरान कहीं। परिचर्चा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हो रही थी।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त कुरैशी ने इस बात का भी दावा किया कि भारत में मुसलमानों की आबादी को लेकर कई तरह के मिथक फैलाए जा रहे हैं। जिसके कारण हिंदुओं के बीच मुसलमानों को लेकर शत्रुता का भाव पैदा हो रहा है।
अपने बयान में मुस्लिम आबादी संबंधी मिथकों की सूची का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा माहौल बनाया जाता है कि मुसलमान कई बच्चे पैदा करते हैं और जनसंख्या विस्फोट के लिए केवल वे ही जिम्मेदार हैं।
मुसलमान परिवार नियोजन के सबसे निचले स्तर पर हैं जो केवल 45.3 फीसदी है। उनकी कुल प्रजनन दर 2.61 है जोकि उच्चतम है। जबकि हिंदू परिवार नियोजन के मामले में 54.4 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर हैं और कुल प्रजनन दर 2.13 है।
इस तथ्य के स्पष्टीकरण में आंकड़ों का हवाला देते हुए कुरैशी ने कहा कि मुसलमान परिवार नियोजन के सबसे निचले स्तर पर हैं जो केवल 45.3 फीसदी है। उनकी कुल प्रजनन दर 2.61 है जोकि उच्चतम है। हालांकि, तथ्य यह है कि हिंदू भी बहुत पीछे नहीं हैं और वे परिवार नियोजन के मामले में 54.4 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर हैं और कुल प्रजनन दर 2.13 है। उन्होंने इन तथ्यों को पूरी तरह नजरअंदाज किये जाने की बात कही।
कुरैशी ने अपनी बात में स्पष्ट करते हुए कहा कि एक और प्रचार में कहा जाता है कि राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने के लिए मुसलमानों द्वारा हिंदू आबादी से आगे निकलने के लिए संगठित साजिश है। उन्होंने कहा कि किसी भी मुस्लिम नेता या विद्वान ने मुसलमानों को हिंदुओं से आगे निकलने के लिए अधिक बच्चे पैदा करने के लिए नहीं कहा है। इस सम्बन्ध में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर दिनेश सिंह और अजय कुमार के गणितीय मॉडल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमान हिंदुओं से जनसंख्या में कभी आगे नहीं निकल सकते हैं।