इंटरनेट ने जीवन में इस हद तक अतिक्रमण किया है कि लोग अब यह कहने में संकोच नहीं करते हैं कि यह एक लग्ज़री नहीं बल्कि एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है।
वैश्विक विकास के बावजूद, दुनिया भर में अमीर और गरीब देशों के बीच डिजिटल विभाजन बढ़ रहा है और आज एक अरब से अधिक लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। इस प्रकार, वे न केवल अप-टू-डेट जानकारी से वंचित हैं बल्कि व्यापार के अवसरों से भी वंचित हैं।
अफोर्डेबल इंटरनेट ने हालिया रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक कोविड 19 महामारी के संदर्भ में इंटरनेट ने इसे “एक लक्जरी नहीं बल्कि एक आवश्यकता” बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इंटरनेट को बुनियादी मानव अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए।
ब्रॉडबैंड में एशिया सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है। रिपोर्ट में कहा गया है। यहां ADI सबसे ज्यादा स्कोर करता है और इंटरनेट सबसे कम खर्च करता है। यानी औसत मासिक आय का डेढ़ प्रतिशत इंटरनेट पर खर्च होता है, जिसके तहत एक गीगाबाइट डेटा प्राप्त किया जा सकता है।
इस संबंध में, अफ्रीका ने तेजी से प्रगति की है, लेकिन अभी भी उनको एक लंबा रास्ता तय करना है। गरीब देशों को इस स्थिति को समाप्त करने के लिए बुनियादी ढांचे में 428 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है, अन्यथा दुनिया में एक अरब लोग इंटरनेट तक पहुंचने से दूर रहेंगे। इस बीच कुछ संगठन जोर देते हैं कि इंटरनेट की सुविधा बिल्कुल मुफ्त होनी चाहिए।