विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमरीका द्वारा दी जाने वाली वित्तीय कटौतियों को टीबी के खिलाफ जारी लड़ाई में खरतनाक बताया है।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने अपने बयान में कहा है कि इस कटौती के कारण आवश्यक रोकथाम, जाँच और उपचार सेवाएँ चरमरा रही हैं, जिससे लाखों लोग जोखिम में है।
भारत में साल 2021 में टीबी रोगियों की संख्या 19,33,381 थी। साल 2022 में टीबी से पीड़ित लोगों की संख्या में वैश्विक उछाल में सबसे बड़ा योगदान देने वाले दो देशों में भारत शामिल था। भारत में सुप्त तपेदिक की व्यापकता दर बहुत ज़्यादा है, जो कि कुल जनसंख्या का लगभग 40 प्रतिशत है।
टीबी आज भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक बीमारी बनी हुई है। ऐसे संगठन का कहना है कि टीबी यानी तपेदिक के ख़िलाफ़ दशकों में हासिल की गई प्रगति ख़तरे में पड़ गई है।
डब्ल्यूएचओ के वैश्विक टीबी व फेफड़ों से जुड़े स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम की निदेशक तरेज़ा कसाएवा का कहना है- “टीबी सेवाओं में वित्तीय, राजनैतिक या परिचालन सम्बन्धी कोई भी बाधा, दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए विनाशकारी और घातक परिणाम का कारण बन सकती है।”
सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में अफ़्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशान्त शामिल हैं, क्योंकि इन देशों में, राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम, अधिकतर अन्तरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने भी पिछले सप्ताह, स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सहायता कटौती को लेकर चिन्ता व्यक्त करते हुए, एचआईवी/एड्स, तपेदिक, मलेरिया और हैज़ा जैसी बीमारियों पर इसका सीधा असर पड़ने की आशंका जताई थी।
बताते चलें कि पिछले दो दशकों में टीबी से निपटने के वैश्विक कार्यक्रमों के ज़रिए 7.9 करोड़ से अधिक लोगों की जान बचाई गई है। केवल पिछले वर्ष ही, इससे लगभग 36.5 लाख लोग मौत के मुँह में जाने से बचे हैं।
डब्ल्यूएचओ ने टीबी के ख़िलाफ़ लड़ाई में सरकारों और वैश्विक भागीदारों को समर्थन देने की अपनी प्रतिबद्धता जताई है। इस सफलता में अमरीकी सरकार द्वारा दी जा रही वित्तीय सहायता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अमरीका द्वारा हर साल लगभग 20 से 25 करोड़ डॉलर वित्तीय सहायता मुहैया करवाई जाती रही है जोकि कुल अन्तरराष्ट्रीय वित्त सहायता का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है।
लेकिन, अमरीका की नई सरकार द्वारा जारी नए कार्यकारी आदेशों के तहत, इस वर्ष के लिए घोषित नई वित्त कटौतियों से करीब 18 देशों में टीबी कारर्वाई पर विनाशकारी प्रभाव होने की सम्भावना है।