आधुनिक सिनेमा ने स्व. यश चोपड़ा को प्रेम त्रिकोण का मसीहा माना और उनके द्वारा पेश की गई प्रेम आधारित फिल्मों को एक अलग नजरिये से देखना शुरू किया। उन्होंने ‘कभी कभी’ (1976), ‘चांदनी’ (1989) और ‘लम्हें’ (1991) में इसे जताया भी और शायद यही वजह है कि ‘लम्हें’ के पिटने के बाद आज उसे एक क्लासिक फिल्म का दर्जा दिया जाता है, क्योंकि वो अपने समय से आगे की फिल्म थी। FILM REVIEW
फिल्म मेकिंग के मामले में करण जौहर, यश चोपड़ा से काफी प्रभावित रहे हैं और वो ये मानते भी हैं, लेकिन उनका भी अपना एक अंदाज है, जो उनकी पहली फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’ (1998) से आज तक बरकरार है। फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ उनके उसी फलसफे की आगे की दास्तां है, जहां उन्होंने ‘कुछ कुछ होता है’ से प्यार और दोस्ती के फर्क को समझाने की कोशिश की थी। ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में प्यार और दोस्ती के बीच की महीन रेखा को करण ने दो किरदारों के साथ कहने की कोशिश की है। हालांकि पहली नजर में यह फिल्म एक प्रेम त्रिकोण की तरह दिखती है और बाद में एकतरफा प्यार की तरफ भी झुकती है, लेकिन मोटे तौर पर ये दो दोस्तों की कहानी कहती है, जिनके बीच प्यार तो है, लेकिन वो पारंपरिक नहीं है।
ये कहानी शुरू होती है लंदन से। यहां रहने वाला आयन (रणबीर कपूर) एक एमबीए और संगीत प्रेमी भी है। वो गायक बनना चाहता है, लेकिन अपने मन की करना उसे आता ही नहीं। उसकी ये झिझक तोड़ने में उसकी मदद करती है आलिजा (अनुष्का शर्मा), जो उसे एक पार्टी में मिलती है। आलिजा इतनी बिंदास है कि मुलाकात के दूसरे ही क्षण वह आयन की बांहों में होती है और फिर दोनों काउच पर। आलिजा जितनी बिंदास है और खुले विचारों की है, उतनी ही मुंहफट भी है।
उसका एक बोरिंग सा टाइम-पास प्रेमी भी है, जिसका नाम है डॉ. अब्बास (इमरान अब्बास)। इसी तरह दूसरी तरफ आयन की भी एक प्रेमिका है लीजा (लीजा हेडन)। नाज-नखरों वाली लीजा, आलिजा की समझ से परे है। आयन और आलिजा के मेल-जोल बढ़ने का असर ये होता है कि लीजा और अब्बास एक-दूसरे के प्रेमी बन जाते हैं और कहानी एक नया मोड़ ले लेती है।
अपने ब्रेकअप्स का गम भुलाने के लिए ये दोनों पेरिस घूमने निकल पड़ते हैं, जहां इनकी दोस्ती और गहरी होने लगती है। लेकिन आयन, आलिजा को चाहने लगता है, जबकि इस प्यार को दोस्ती तक ही सीमित रहने देना चाहती है।
पेरिस में अचानक एक दिन आलिजा की मुलाकात अली (फवाद खान) से हो जाती है, जो उसका पूर्व प्रेमी है। अली, आलिजा की जिंदगी में वापस आना चाहता है, जो आयन को बर्दाश्त नहीं है। आयन पेरिस वापस आ जाता है और उसे एक दिन पता चलता है कि आलिजा, अली से शादी कर रही है। वह इन दोनों की शादी में शरीक होने लखनऊ जाता है, जहां उसके सब्र का बांध टूट जाता है और वह आलिजा के सामने अपने प्यार का इजहार खुल कर देता है। लेकिन आलिजा की नामंजूरी के बाद उसे वहां से जाना पड़ता है।
लंदन वापस आते समय आयन की मुलाकात सबा (ऐश्वर्या राय बच्चन) से होती है, जो कि एक शायरा है। एक गायक और शायरा का साथ खूब जमता है और दोनों को एक-दूजे के साथ अपना-अपना गम भुलाने की वजह भी मिल जाती है। सबा का तलाक हो चुका है। उसका पति ताहिर खान (शाहरुख खान) एक अंतरराष्ट्रीय पेंटर है, जिससे आयन की मुलाकात उसकी जिंदगी की राह बदल देती है। वह एकतरफ प्यार में जीने की फिर से कोशिश करने लगता है और आलिजा अचानक फिर से उसकी जिंदगी में आ जाती है।
लेकिन जब एक दिन सबा, आयन और आलिजा की आपस में मुलाकात होती है तो सबा को समझ आता है कि दरअसल आयन, आलिजा को जलाने के लिए उसके करीब आया है। सबा, आयन से दूरियां बना लेती है और आयन फिर से अकेला हो जाता है। खुद के गम को अपने में जज्ब करने के लिए वह संगीत की दुनिया में डूब जाता है। वह संगीत को ही अपना प्यार मान लेता है। लेकिन उसे नहीं पता कि उसकी गैर मौजूदगी में आलिजा पर क्या बीती है। FILM REVIEW
प्यार दोस्ती है, दोस्ती ही प्यार की टैगलाइन के साथ करण जौहर में इस फिल्म को अपने चिर-परिचित अंदाज में बनाया है। लंदन उनकी पसंदीदा जगह है। इस बार वह पेरिस भी जा पहुंचे हैं। सितारों की वार्डरोब में भी उनका अच्छा-खासा हस्तक्षेप रहता है, इसलिए फिल्म विजुअली बेहद खूबसूरत बन पड़ी है। इंटरवल से पहले की फिल्म हल्के-फुल्के हंसी मजाक और कहानी को आकार देने में गुजर जाती है।
आलिजा और आयन के किरदार उन्होंने सुंदर गढ़े हैं और वह भारतीय युवा प्रेमियों की समझ से काफी आगे के किरदार है। इसलिए एक आमजन उनके जैसा बनना तो चाहेगा, लेकिन बस चाह कर ही रह जाएगा। सबसे अच्छी बात है कि आलिजा जैसे किरदार को, जिसे काफी खुले विचारों वाला, बेहद आजाद ख्याल के साथ-साथ काफी गहराई वाला दिखाया है, उसे संवाद भी सबसे अच्छे मिले हैं। मेरा शौहर मेरा वजूद नहीं हो सकता… सरीखे संवाद उसकी अपनी पहचान के लिए काफी लगते हैं। आलिजा का किरदार कई जगह बेहद फिल्मी होने के बावजूद अपने आप में एक मजबूत किरदार लगता है। FILM REVIEW
दूसरी तरफ रणबीर कपूर को देख ऐसा लगता है कि वह मैदान में फिर से लौट आए हैं। उनमें भरपूर उर्जा दिख रही है। उनके किरदार में गम को पी जाने की कला और दर्द महसूस किया जा सकता है। खासतौर से ‘चन्ना मेरेया…’ गीत में। आयन का किरदार रणबीर के एक अन्य किरदार कबीर (ये जवानी है दीवानी) के आस-पास का किरदार है, जिसे उन्होंने अपने दमदार अभिनय से काफी ऊंचा उठा दिया है। रणबीर फैन्स के लिए ये अच्छी खबर हो सकती है, वे अपने चुलबुले, नॉटी से लवर वाले खांचे में फिर से फिट हो गए हैं।
ऐश्वर्या राय का किरदार मेहमान की भूमिका और कैमियो से थोड़ा ज्यादा है। वह अच्छी लगी हैं और उनके किरदार में गहराई भी है। लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें भी फवाद की तरह सस्ते में निपटा दिया गया है। इस कहानी में सबा और अली के किरदार और रोचकता ला सकते थे। खासतौर से अली का किरदार, जिसके लिए आलिजा सब कुछ छोड़ कर चली जाती है। FILM REVIEW
बहुत सारी नई बातों के न होने बावजूद यह फिल्म बांधे रखती है। इसकी वजह है इसका स्क्रीनप्ले, जिसमें विश्वास पैदा करने वाली तमाम बातें मौजूद हैं। ये कोई नई प्रेम कहानी नहीं है, फिर भी पल-पल भाती है। उत्सव के इस माहौल में ऐसी हंसी-खुशी वाली फिल्म की ही जरूरत महसूस होती है और करण जौहर तो कहते ही हैं कि उन्हें ऐसी फिल्में बनाना पसंद है, जिसे पूरा परिवार साथ देख सकें। हालांकि इसमें कई बातें ऐसी भी हैं, जिन्हें परिवार के साथ देखने पर थोड़ी असहजता हो सकती है। लेकिन अच्छे अभिनय और सब कुछ अच्छा-अच्छा देखने की चाहत रखने वालों को यह फिल्म निराश नहीं करेगी। FILM REVIEW
कलाकार: रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, ऐश्वर्या राय बच्चन, फवाद खान, लीजा हेडन, इमरान अब्बास
निर्देशक-लेखक: करण जौहर
निर्माता: अपूर्व मेहता, हीरू यश जौहर, करण जौहर
संगीत : प्रीतम
गीत : अमिताभ भट्टाचार्य
संवाद : निरंजन अय्यर, करण जौहर
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