हर इंसान एक साल में 10 हजार माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े या तो खा रहा है या फिर सांसों के जरिए अपने शरीर में उड़ेल रहा है. प्लास्टिक कचरा हमारी सेहत पर कितना नुकसान डाल सकता है यह सवाल अब और बड़ा हो गया है.
माइक्रोप्लास्टिक यानी इंसान के बनाए प्लास्टिक के छोटे छोटे टुकड़े इस वक्त अकेली ऐसी चीज है जो धरती पर हर जगह मौजूद हैं. अब वो चाहे सिंथेटिक कपड़ों से निकले टुकड़े हों, कार के टायरों से या फिर कांटैक्ट लेंस या रोजमर्रा काम आने वाली किसी और चीज से. दुनिया के सबसे ऊंचे इलाकों में मौजूद ग्लेशियरों से लेकर समंदर की गहरी से गहरी खाइयों तक में यह मौजूद हैं.
Canadians know first-hand the impacts of plastic pollution, and are tired of seeing their beaches, parks, streets, and shorelines littered with plastic waste. Today, Prime Minister Justin Trudeau announced steps to address this global challenge: https://t.co/4N8UWDV2H9 pic.twitter.com/ZDTfdnzqZF
— CanadianPM (@CanadianPM) June 10, 2019
बीते दिनों हुई कई रिसर्चों से पता चला है कि किस तरह माइक्रोप्लास्टिक इंसान की खाद्य श्रृंखला में घुस सकता है. यहां तक कि पिछले साल कई मशहूर ब्रांड के सीलबंद बोतलों में बिकने वाले पानी में भी प्लास्टिक के टुकड़े मिले. हाल में कनाडा के वैज्ञानिकों ने रिसर्च के दौरान माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के बारे में सैकड़ों आंकड़ों के विश्लेषण किया और फिर उन्हें अमेरिकी लोगों की खाने पीने की आदतों से तुलना की.
Americans eat and inhale more than 70,000 plastic particles each year, study says https://t.co/VvWHUE1Gpl
— TIME (@TIME) June 11, 2019
इसके आधार पर उन्होंने पता लगाया है कि एक वयस्क इंसान एक साल में माइक्रोप्लास्टिक के करीब 52,000 टुकड़े अपने शरीर में डाल सकता है. उदाहरण के लिए जिस तरह की प्रदूषित हवा में हम जी रहे हैं उसमें केवल सांस के जरिए ही 1.21 लाख माइक्रोप्लास्टिक के कण शरीर में जा सकते हैं यानि कि हर दिन करीब 320 प्लास्टिक के टुकड़े. इसके अलावा अगर कोई इंसान सिर्फ बोतलबंद पानी पीता है तो एक साल में उसके शरीर में करीब 90,000 प्लास्टिक के टुकड़े जा सकते हैं. इस रिसर्च के बारे में रिपोर्ट इंवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में छपी है.
रिपोर्ट के लेखकों ने इस ओर भी ध्यान दिलाया है कि ये आंकड़े अनुमान हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी इंसान के शरीर में प्लास्टिक के कितने कण जाएंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कहां रहता है और क्या खाता है. उनका यह भी कहना है कि इंसान के शरीर पर माइक्रोप्लास्टिक का क्या असर होता है यह अभी ठीक से समझा नहीं गया है. हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक “130 माइक्रोमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण में यह क्षमता है कि वो मानव उत्तकों को स्थानांतरित कर दें और फिर शरीर के उस हिस्से की प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित करें.
एलेस्टेयर ग्रांट यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया में इकोलॉजी के प्रोफेसर हैं. उनका कहना है कि रिसर्च में जिन प्लास्टिक कणों की पहचान कि गई है उनसे “इंसान के स्वास्थ्य को बहुत खतरा होने” की बात अब तक सामने नहीं आई है. ग्रांट इस रिसर्च में शामिल नहीं थे. हालांकि उनका कहना है सांस के जरिए शरीर में जाने वाली प्लास्टिक का एक बहुत छोटा हिस्सा ही वास्तव में फेफड़ों तक पहुंचता है.
रिसर्चरों का कहना है कि कितना माइक्रोप्लास्टिक हमारे फेफड़ों और पेट में जाता है और उससे क्या खतरा हो सकता है इसे ठीक से समझने के लिए अभी और रिसर्च की जरूरत होगी. वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक को इंसान के शरीर में पहुंचने से रोकने का सबसे कारगर तरीका यही होगा कि प्लास्टिक का निर्माण और उपयोग घटाया जाए.
इस रिसर्च के नतीजे ऐसे वक्त में सामने आये हैं जब संयुक्त राष्ट्र की ओर से पूरी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है. इस बार की थीम भी वायु प्रदूषण रखी गई है.
courtesy DW.com