नयी दिल्ली 17 मार्च : वैश्विक महामारी कोराेना के प्रकोप के बीच दुनिया भर में भले ही घर से काम करने का चलन बढ़ा लेकिन एक साल के अनुभव के बाद बड़ी संख्या में लोगों को महसूस हो रहा है कि इससे उनके जीवन में कोई संतुष्टि नहीं है और उनकी उत्पादकता भी प्रभावित हुई है।
स्टीलकेस की तरफ आज जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण ऑफिस के ज्यादातर कर्मचारियों ने साल में ज्यादातर समय घर से काम किया जिससे व्यवसायों को उत्पादकता, जुड़ाव और नवाचार में हुए नुकसान के लिहाज सबसे भारी कीमत चुकी पड़ी है।
स्टीलकेस के ‘बदलती अपेक्षाएं और कार्यस्थलों का भविष्य’ शीर्षक वाले इस अध्ययन में महामारी की पूरी अवधि में 10 देशों के विवरण शामिल किए गया हैं जिसमे भारत भी शामिल है और देश में करीब 32 हजार लोगों ने इस अनुसंधान में हिस्सा लिया है। इस रिसर्च में कर्मचारी, बिजनेस लीडर्स और रियल एस्टेट से संबंधित निर्णय लेने वाले भी शामिल हैं जो लाखों कामगारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में भारत में काम करने वाले लोगों ने कहा कि घर से काम करने (वर्क फ्रोम होम) के कुछ फायदे जरूर हैं लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां भी हैं।
वैश्विक स्तर पर करीब 41 प्रतिशत कामगारों ने कहा कि वे अपने घर से काम करने की स्थिति से असंतुष्ट हैं। इसके साथ इन लोगों पर इसके प्रभाव का उल्लेख किया और कहा कि इससे उत्पादकता और जुड़ाव पर असर पड़ा है।
स्टीलकेस ने बताया कि वैश्विक स्तर पर करीब 41 प्रतिशत कामगारों ने कहा कि वे अपने घर से काम करने की स्थिति से असंतुष्ट हैं। इसके साथ इन लोगों पर इसके प्रभाव का उल्लेख किया और कहा कि इससे उत्पादकता और जुड़ाव पर असर पड़ा है। भारत में भी कामगारों के उनके कार्यस्थल एवं काम से संपूर्ण जुड़ाव और उत्पादकता की स्थिति में क्रमश: 16 और 7 प्रतिशत कमी दर्ज की गयी है।
अध्ययन के अनुसार घर से काम करने के पैरोकार लोगों ने इससे दो फायदों पर प्रकाश डाला है। ऐसे लोगों का कहना है कि घर से काम करने पर स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए ज्यादा समय मिलता है और अच्छे से फोकस किया जा सकता है। इसके उलट एक तिहाई से अधिक लोगों ने घर से काम करने के अपने अनुभवों को बुरा बताया। उनका कहना है कि इससे अलग-थलग रहने की भावना पैदा हो गई थी जिससे निर्णय लेने की क्षमता पर 26.4 प्रतिशत, काम की गति पर 21.7 फीसदी तथा काम और जिंदगी के बीच संतुलन पर 20.4 प्रतिशत प्रभाव पड़ा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन शीर्ष बाजारों में एक है जहां कर्मचारी मिश्रित मॉडल या हाइब्रिड पद्धति से काम करने को सबसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं। महामारी के बाद लोगों की अपेक्षाओं की बात की जाए तो भारत में कामगार कोविड लॉकडाउन अवधि के दौरान ऑनलाइन काम करने की आदत को अपनाने में कामयाब रहे हैं और वे अपनी कार्यपद्धति में इसे आगे भी बनाये रखने के इच्छुक हैं। लेकिन वे घरों में कैद भी नहीं रहना चाहते हैं। इसी लिए तीन चौथाई से अधिक लोगों का विचार है कि वे अपनी टीम के लिए ज्यादा हाइब्रिड काम की अपेक्षा करते हैं।
दूसरी ओर ऐसा कहने वाले लोगों की संख्या 90 फीसदी जो अपने कर्मचारियों को विस्तृत विकल्प देना चाहते हैं और वे कहां से काम करना चाहते हैं इसका निर्णय वे उन्हीं पर छोड़ना चाहते हैं। इस अध्ययन में देखा गया कि 61 प्रतिशत कर्मचारियों ने पेशेवर माहौल में काम करने, 56 प्रतिशत ने संस्थान से फिर से जुड़ने और 49 प्रतिशत ने सहकर्मियों से कनेक्ट होने की इच्छा जताई।