ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक नई विधि विकसित की है जिसका उपयोग मानव अपशिष्ट (human waste) को जेट ईंधन में बदलने के लिए किया जा सकता है।
ग्लॉस्टरशायर के ब्रिटिश काउंटी की एक स्थानीय कंपनी फायरफ्लाई फ्यूल का कहना है कि उसका बायो फ्यूल रासायनिक रूप से जेट ईंधन के समान है, लेकिन उसके मुक़ाबले में 92 प्रतिशत कम कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करता है।
इस उद्योग का उपयोग प्रदूषण के एक प्रमुख स्रोत को कम करने में मदद कर सकता है, जो वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादन में दो प्रतिशत का योगदान देता है।
फायरफ्लाई ग्रीन फ्यूल्स के सीईओ जेम्स हाईगेट के अनुसार, वैज्ञानिक ईंधन के लिए कच्चा माल ढूंढना चाहते थे जो, बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो और मानव अपशिष्ट भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध होता है।
मानव अपशिष्ट से उपयोग योग्य ईंधन का तैयार करने के लिए, फ़ायरफ़्लाई ने हाइड्रोथर्मल द्रवीकरण नामक एक प्रक्रिया का उपयोग किया। यह प्रक्रिया अपशिष्ट को कार्बन-समृद्ध बायोचार और कच्चे तेल में बदलने के लिए हाई प्रेशर के साथ तेज़ टेम्प्रेचर की भी मदद ली।
Innovative aviation firm converts human waste into eco-friendly jet fuel https://t.co/szqWsTq2vl pic.twitter.com/z5q0Y9Tnqw
— Voice of Europe 🌍 (@V_of_Europe) December 28, 2023
यह जैव-कच्चा माल काफी हद तक तेल जैसा दिखता है और रासायनिक रूप से उसी तरह व्यवहार करता है, जिसका अर्थ है कि वैज्ञानिक फ्रैक्शनल डिस्टिलेशन का प्रयोग करके ईंधन में से मिट्टी का तेल निकाल सकते हैं।
इस प्रक्रिया में तेल को वाष्पित (evaporated) कर दिया जाता है और अलग किए गए अंश को जमा करके एक निश्चित तापमान तक ठंडा कर लिया जाता है।
इस केरोसिन के प्रारंभिक परीक्षणों से पता चला है कि इसकी रासायनिक संरचना जीवाश्म जेट ईंधन से काफी मिलती जुलती है।
इस बायोकेरोसीन का वर्तमान में जर्मन एयरोस्पेस सेंटर में डीएलआर इंस्टीट्यूट ऑफ कम्बशन टेक्नोलॉजी में परीक्षण चल रहा है।