टिकटॉक का इस्तेमाल आप मनोरंजन के लिए करते होंगे. लेकिन चीन के उइगुर लोग ऐसे ही एक ऐप के जरिए अपने उन रिश्तेदारों को खोज रहे हैं जिन्हें शायद सरकार उठा कर ले गई है.
चीन के शिनजियांग से पिछले एक हफ्ते में कई वीडियो पोस्ट किए जा चुके हैं. इन वीडियो में उइगुर मुसलमान बगैर शब्दों का सहारा लिए अपना दुख व्यक्त करते दिख रहे हैं. इन वीडियो को पोस्ट किया गया है डोयिन नाम के ऐप पर जो टिकटॉक का ही एक रूप है. यह ऐप दुनिया भर के युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय है. टिकटॉक की ही तरह यहां भी यूजर हर तरह के छोटे वीडियो अपलोड कर सकते हैं और आमतौर पर ये हंसी मजाक से भरे होते हैं. लेकिन इन वीडियो में उइगुर युवा अपने परिवार के उन सदस्यों की ओर ध्यान दिला रहे हैं जो फिलहाल लापता हैं. वे अपने प्रियजनों की तस्वीरों के साथ रोते हुए नजर आ रहे हैं.
शिंगजियांग के “री-एजुकेशन” शिविरों पर बारीकी से नजर रखने वाले ऑस्ट्रेलियाई एक्टिविस्ट अरसलान हिदायत के अनुसार, इनमें से कई वीडियो फेसबुक जैसे अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी साझा किए गए हैं. चीनी सरकार का दावा है कि “री-एजुकेशन” शिविरों का मकसद आतंकवाद और अतिवाद को रोकना है लेकिन इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि मुस्लिम बहुल इलाकों में जेल जैसे इन शिविरों को उत्पीड़न के लिए बनाया गया है. यहां दो लाख से भी ज्यादा संदिग्धों को रखा गया है.
हिदायत ने उइगुर मुसलामानों के बनाए दर्जनों वीडियो संकलित किए और उन्हें ट्विटर पर शेयर किया. डीडब्ल्यू से बातीच में उन्होंने कहा, “एक वीडियो में, एक उइगुर लड़की ने चार उंगलियां उठाईं, बैकग्राउंड में उसके परिवार के चार पुरुषों की तस्वीरें थीं. वह चुपचाप रो रही थी. जब उसने अपना हाथ नीचे किया, तो मुझे पता था कि उसमें एक संदेश छिपा था जिसे वह दुनिया के साथ साझा करना चाहती थी.”
This brave #Uyghur #Muslim girl, still resides in #Xinjiang aka #EastTurkestan is indicating that four of her relatives are in #China's #ConcentrationCamps. She obviously wants the world to know regardless of what might happen to her, PLEASE SHARE for her sake.#CloseTheCamps pic.twitter.com/ifdixYrjaj
— Arslan Hidayat.ئارسلان ھىدايەت (@arslan_hidayat) August 18, 2019
हिदायत का मानना है कि उइगुर लोग परिवार के लोगों की तस्वीरों के साथ दुनिया तक कोई संदेश पहुंचाना चाहते हैं. इसके लिए वे एक हैशटैग का इस्तेमाल भी कर रहे हैं, जिसका मतलब है “आपसे मिलने के लिए हम वक्त से गुजर रहे हैं.” उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादातर वीडियो एक लोकप्रिय तुर्की टीवी शो के गीत “रिटर्न” का इस्तेमाल कर रहे हैं. हिदायत का कहना है, “यह स्पष्ट है कि वे इस हैशटैग के जरिए वीडियो के वास्तविक संदेशों को छिपा रहे हैं, इसलिए ताकि अगर कभी उन्हें चीनी अधिकारियों का सामना करना पड़े, तो वे यह दावा कर सकें कि वीडियो उन लोगों को समर्पित हैं जिनसे वे मिलना चाहते हैं लेकिन ऐसा सिर्फ तब ही मुमकिन है अगर वे समय में सफर कर अतीत में लौट सकें.”
वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार इन वीडियो को जिन अकाउंट से शेयर किया गया था, वे या तो डिलीट कर दिए गए हैं या फिर डिसेबल. साथ ही जो अकाउंट एक्टिव हैं वहां से भी परिवार के लापता सदस्यों की तस्वीरों को हटा दिए गया है. चीनी कानून के तहत डोयिन ऐप राजनीतिक विचार व्यक्त करने वाली किसी भी सामग्री को हटाने का अधिकार रखती है.
जुलाई में शिनजियांग के गवर्नर शोहरत जाकिर ने दावा किया था कि “री-एजुकेशन” शिविरों में हिरासत में लिए गए अधिकतर उइगुर लोगों को रिहा कर दिया गया है. इस दावे की तो पुष्टि नहीं की जा सकती लेकिन हिदायत का यह जरूर मानना है कि ये वीडियो जाकिर के दावे को अस्वीकार करने का एक तरीका हो सकते हैं. उनका कहना है, “अगर शिविरों में हिरासत में लिए गए अधिकांश उइगुर लोगों को छोड़ दिया गया है, तो उनमें से कई को अब तक अपने परिवार के पास पहुंच जाना चाहिए था. यही कारण है कि ये वीडियो और इसके साथ चलने वाला हैशटैग #provethe90 इतना महत्वपूर्ण है क्योंकि लोग चाहते हैं कि चीनी सरकार इसे साबित करे.”
हालांकि अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इन वीडियो के मतलब का आकलन करना मुश्किल है क्योंकि परिवारों के बारे में कोई संदर्भ या जानकारी नहीं है. ब्रसेल्स यूनिवर्सिटी में चाइनीज स्टडीज पढ़ाने वाली वनेसा फ्रांजविल इस बारे में कहती हैं, “हम नहीं जानते कि यह आंदोलन कैसे शुरू हुआ और क्यों. क्योंकि हम इन परिवारों की कहानियों के बारे में विस्तार से नहीं जानते, इसलिए मैं इनमें जबरन मतलब ढूंढने से बचना चाहूंगी.” हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगर वाकई इन वीडियो का उद्देश्य परिवार के लापता सदस्यों की गवाही देना है, तो यह विरोध का एक रचनात्मक रूप है जो शिनजियांग के उइगुर लोगों की काबिलियत को दर्शाता है.
फ्रांजविल कहती हैं, “उनमें से ज्यादातर लोगों के लिए पिछले दो साल भावुक लम्हों से भरे हुए थे. लेकिन इस संकट के वक्त में भी उन्होंने अपने अनुभव और दर्द को दुनिया के साथ साझा करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है. ये वीडियो इस बात का सबूत हैं कि कई उइगुर अपने प्रियजनों से दूर हैं, उन्हें उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है.” इस सब के बावजूद वे मानती हैं कि वीडियो के सही इरादे का पता करना मुश्किल है.
इन वीडियो को देखते हुए हिदायत ने एक सोशल मीडिया कैंपेन शुरू करने का फैसला किया. विदेश में रह रहे उइगुर मुस्लिम चीन में वीडियो अपलोड करने वालों से संपर्क नहीं कर सकते. हिदायत ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, “चूंकि ज्यादातर वीडियो साफ तौर पर यह नहीं दिखाते कि ये लोग किस कारण रो रहे हैं, इसलिए मैंने उन्हें जवाब देने के लिए हैशटैग #WeHearU का इस्तेमाल करना शुरू किया. मैं चाहता हूं कि उन्हें यह समझ में आए कि भले ही वे वीडियो में खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे हैं लेकिन उनके संदेश स्पष्ट रूप से हम तक पहुंच रहे हैं.”
हिदायत इन वीडियो की तुलना बोतल में बंद संदेशों से करते हैं, “मैं उन्हें वापस लिख रहा हूं और बता रहा हूं कि हम आपको सुन रहे हैं और हम आपके संदेशों को पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.”
वहीं फ्रांजविल का कहना है कि इन वीडियो के चलते अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान नहीं भटकना चाहिए. वह कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रभावी ढंग से समस्याओं की पहचान करने के तरीके खोजने चाहिए, खास कर जिस तरह से पश्चिमी कंपनियां शिनजियांग में चल रहे लेबर कैंप पर निर्भर हैं, “इस मुद्दे पर चीन पर दबाव बनाया जाना जरूरी है. इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना बेहद जरूरी है.”
रिपोर्ट: सू जी मेलिसा ब्रुनेरसुम/आईबी