छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में संपत्ति सम्बन्धी फैसले में स्त्री पक्ष पर पाना फैसला सुनाया। स्त्रीधन संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकती है के तर्क पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि पति अपने संकट के समय इसका उपयोग कर सकता है मगर उसका नैतिक दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को उसका मूल्य अथवा संपत्ति लौटाए। पति इस संपत्ति पर अधिकार नहीं जता सकता है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बिलासपुर के राधाकिशन शर्मा को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह से पहले, विवाह के दौरान अथवा उसके बाद महिला को उपहार में दी गई संपत्तियां स्त्रीधन संपत्तियां हैं। पत्नी इस संपत्ति का मालिकाना अधिकार रखते हुए इसे अपनी मर्ज़ी से खर्च कर सकती है। आवश्यकता पड़ने पर पति अपने संकट के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन फिर भी उसका नैतिक दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को उसका मूल्य अथवा संपत्ति लौटाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्त्रीधन संपत्ति, संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकती। इस पर पति अधिकार नहीं जता सकता है।
हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एक मामले में लिए गए निर्णय को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया। ऐसे में यह न्याय दृष्टांत बन गया है।
CG HC का बड़ा फैसला: विवाह में मिला स्त्रीधन सिर्फ महिला की संपत्ति, पति नहीं जता सकता अधिकार#CGHC #Dowry #Marriage https://t.co/WQUB4hDDEs
— Dainik Jagran (@JagranNews) July 14, 2023
मामला सरगुजा जिले के लुंड्रा थाना क्षेत्र निवासी बाबूलाल यादव ने फॅमिली कोर्ट अंबिकापुर के फैसले को 23 दिसंबर, 2021 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में याचिकाकर्ता ने धारा 27 का हवाला देते हुए बताया कि स्त्रीधन वापसी के लिए स्वतंत्र आवेदन जमा करने की अब तक व्यवस्था नहीं है।
उसने स्वतंत्र आवेदन के ज़रिये दिए गए फैसले पर आपत्ति जताते हुए इसे रद करने की मांग की थी। फॅमिली कोर्ट अंबिकापुर में याचिकाकर्ता की पत्नी ने दहेज के अलावा परिचितों व स्वजन द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति को वापस दिलाने की मांग की थी। इस पर फॅमिली कोर्ट ने संपत्ति वापस करने के निर्देश दिए थे। स्त्रीधन वापसीको लेकर पूर्व में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की दो डिवीजन बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया था।
एक बेंच द्वारा स्त्रीधन वापसी के लिए स्वतंत्र आवेदन को सही ठहराया गया था जबकि दूसरी डिवीजन बेंच ने स्वतंत्र आवेदन के प्रविधान को गलत ठहराने के साथ याचिका खारिज कर दी थी।
एक ही केस में दो डिवीजन बेंच के अलग-अलग फैसले को ध्यान में रखते हुए चीफ जस्टिस सिन्हा ने लार्जर बेंच का गठन करने का निर्देश रजिस्ट्रार जनरल को जारी किया था। याचिका की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के निर्देश पर तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया गया। चीफ जस्टिस सिन्हा, जस्टिस दीपक कुमार तिवारी और जस्टिस संजय के अग्रवाल की बेंच में मामले की सुनवाई की गई।