सरकार ने देश में होने वाली दशकीय जनगणना की तैयारी शुरू कर दी है। इस बार होने वाली यह पहली डिजिटल जनगणना होगी। इस जनगणना में स्व-गणना पोर्टल शामिल होगा।
गौरतलब है कि कोविड महामारी के कारण 2020 की जनगणना स्थगित हो गई थी जिसे अब जल्द ही कराया जाएगा। हालाँकि जनगणना मामले में जाति संबंधी कॉलम पर निर्णय अभी तक नहीं लिया जा सका है। महिला आरक्षण अधिनियम का कार्यान्वयन भी जनगणना से ही संबंधित है।
बताते चलें कि भारत में 1881 से प्रत्येक दस वर्ष में जनगणना की जाती है। इस दशक की जनगणना का प्रथम चरण पहली अप्रैल 2020 को शुरू होना था मगर कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था।
सरकार द्वारा दशकीय जनगणना कराने की तैयारी शुरू कर दी है। इस प्रक्रिया में जाति संबंधी ‘कॉलम’ को शामिल किए जाने पर अभी निर्णय नहीं लिया गया है।
गौरतलब है कि यह पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें नागरिकों को स्वयं गणना करने का अवसर दिया जाएगा। इस प्रक्रिया के लिए जनगणना प्राधिकरण द्वारा एक स्व-गणना पोर्टल तैयार किया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ जनगणना प्रक्रिया पर सरकार के 12,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने की संभावना है।
हालाँकि अभी पोर्टल के लॉन्च संबंधी कोई जानकारी सामने नहीं आई है मगर जानकारों का मानना है कि इस स्व-गणना में आधार या मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से एकत्र किया जाएगा।
बताते चलें कि भारत में 1881 से प्रत्येक दस वर्ष में जनगणना की जाती है। इस दशक की जनगणना का प्रथम चरण पहली अप्रैल 2020 को शुरू होना था मगर कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था।
पिछले वर्ष संसद द्वारा पारित महिला आरक्षण अधिनियम का कार्यान्वयन भी दशकीय जनगणना से संबंधित है। इसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण के लिए एक-तिहाई सीटों वाला कानून भी इस आंकड़ों के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद लागू होगा।
बताते चलें कि जनगणना का काम पहली अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 तक पूरे देश में किया जाना था, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। नये आंकड़ों के सामने न आ पाने की दशा में सरकारी एजेंसियां अभी तक 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही नीतियां बना रही हैं।