कोरोना वायरस महामारी के दौरान इस हफ़्ते क़तर में तख़्तापलट की कोशिशों की ख़बरों ने पश्चिम एशिया में कई लोगों की नींद उड़ा दी है।यहां सवाल यह है कि अगर क़तर में तख़्तापलट की अफ़वाहें सच हुईं, तो इसका फ़ायदा कौन उठा सकता है और इसके क्षेत्र पर संभावित परिणाम क्या होंगे?
हाल ही में सोशल मीडिया पर लोगों ने ऐसे वीडियो देखे होंगे, जिनमें फ़ायरिंग और हंगामें की आवाज़ें सुनी जा सकती हैं, इस घटना को क़तर में कथित तख़्तापलट की कोशिश क़रार दिया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि दोहा के अल-वकराह इलाक़े में असामान्य गतिविधियां देखी गई हैं, जिनकी उन वीडियोज़ से भी पुष्टि होती है, जिनमें फ़ायरिंग की आवाज़ें सुनी जा सकती हैं।
कहा जा रहा है कि क़तर के पूर्व प्रधान मंत्री शेख़ हमद बिन जासिम तख़्तापलट के इस प्रयास का नेतृत्व कर रहे थे।ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि क़तर की वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने तुरंत प्रतिक्रिया दिखाई, जबकि इस देश के अमीर जान बचाकर लंदन भागने के लिए अपने निजी विमान में सवार होने जा रहे थे।
इस रिपोर्ट के बाद, सऊदी गैज़ेट ने एक आर्टिकल में दावा किया कि शाही परिवार के एक सदस्य शेख़ मुबारक बिन ख़लीफ़ा अल-सानी ने अमीर शेख़ तमीम अल-सानी से सत्ता से अलग होने के लिए कहा है।
हालांकि मास्को में क़तर के राजदूत फ़हद बिन मोहम्मद अल-अतियाह ने तास न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए कहा कि इस तरह की वीडियो फ़ुटेज फ़ेक हैं और वास्तविकता से इनका कोई ताल्लुक़ नहीं है।
क़तर के राजदूत की यह बात सही हो सकती है कि यह फ़ेक न्यूज़ है, लेकिन निकट भविष्य में दोहा में तख़्तापलट के प्रयास से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात काफ़ी लम्बे समय से क़तर में तख़्तापलट की साज़िश रच रहे हैं।
सऊदी अरब और उसके सहयोगी अरब देशों ने जून 2017 में क़तर से कूटनीतिक रिश्ते तोड़कर उसकी पूर्ण घेराबंदी कर दी थी। कोरोना महामारी के प्रकोप के बावजूद यह घेराबंदी जारी है। इस बीच क़तर ने सऊदी अरब के विरोधी तुर्की और ईरान से अपने रिश्ते मज़बूत कर लिए और इन देशों के बीच महत्वपूर्ण भागीदारी जारी है।
जबकि पश्चिम का हर न्यूज़ चैनल ईरान को अमरीका और उसके सहयोगी देशों के लिए गंभीर ख़तरा क़रार देता है, यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि सऊदी अरब और उसके सहयोगियों के लिए तुर्की बड़ा ख़तरा है। मिडिल ईस्ट आई में प्रकाशित एक लेख में रहस्योद्घाटन किया गया था कि सऊदी अरब, यूएई और मिस्र ने क्षेत्र में तुर्की और ईरान के प्रभाव को कम करने के लिए इस्राईल के साथ मिलकर एक योजना तैयार की थी और इस उद्देश्य के लिए सीरियाई राष्ट्रपति बशार असद तक से रिश्तों को बहाल करने का प्रयास किया गया था।
2017 में सऊदी अरब उसके सहयोगियों ने क़तर के सामने एक महत्वपूर्ण मांग यह रखी थी कि वह ईरान और तुर्की से अपने संबंध ख़त्म कर ले। लेकिन क़तर ने न केवल इस मांग को ठुकरा दिया था, बल्कि उसने तेहरान और अंकारा से अपने रिश्तों को और अधिक मज़बूत कर लिया।
इसलिए क़तर में अमरीका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा होने के बावजूद, वाशिंगटन की भी यही इच्छा है कि क़तर में सत्ता परिवर्तन हो जाए, ताकि दोहा भी सऊदी अरब और उसके सहयोगियों की तरह पूर्ण रूप से उसके आदेशों का पालन करने लगे।