ईरान के मामले में अमरीका के विशेष दूत ब्रायन हुक ने एक बार फिर ईरान के ख़िलाफ़ बेबुनियाद दावों को दोहराते हुए कहा कि ईरान एसे मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है जो परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम हैं।
ब्रायन हुक ने कई बार की घिसी पिटी चाल दोहराते हुए मिसाइल का एक टुकड़ा दिखाते हुए दावा किया कि यह मिसाइल ईरान ने यमन भेजा है। उन्होंने यमन में जारी मानवीय संकट के लिए ईरान को ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश की।
सच्चाई यह है कि सऊदी अरब अमरीका का बहुत क़रीबी घटक है और इस समय यमन युद्ध तथा वरिष्ठ सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के मामले में सारी दुनिया में बदनाम हो चुका है यहां तक कि ख़ुद अमरीका के भीतर सऊदी अरब की वर्तमान सरकार के ख़िलाफ़ गहरा रोष पाया जाता है।
अमरीकी कांग्रेस तो सऊदी अरब को दंडित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इन हालात में अमरीका की ट्रम्प सरकार यह कोशिश कर रही है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान को किसी भी क़ीमत पर बचा ले और इसके लिए ट्रम्प प्रशासन को यह रास्ता दिखाई दे रहा है कि वह विश्व जनमत का ध्यान सऊदी अरब की ओर से हटाकर ईरान पर केन्द्रित करवा दे। इसी योजना के तहत ईरान के ख़िलाफ़ बेबुनियाद दावे दोहराए जा रहे हैं। मगर क्या अमरीका और सऊदी अरब इस सच्चाई को छिपा सकते हैं कि यमन में जारी मानवीय संकट सऊदी अरब के युद्ध की वजह से पैदा हुआ है।
क्या कोई भी इस सच्चाई को झुठला सकता है कि मार्च 2015 से सऊदी अरब के नेतृत्व वाला गठबंधन यमन पर हमले कर रहा है और इस युद्ध में सऊदी अरब को अमरीका की भरपूर मदद हासिल है?
अमरीका के लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि पश्चिमी एशिया के इलाक़े में उसने जिन ताक़तों को अपना घटक बनाया है और जिनको केन्द्र में रखकर वाशिंग्टन सरकार अपनी रणनीति बना रहा है वह ताक़तें गंभीर संकटों में फंस चुकी हैं। सऊदी अरब और इस्राईल अमरीका के क़रीबी घटक हैं लेकिन दोनों के सामने भारी संकट पैदा हो गया है। यही कारण है कि अमरीका की मध्यपूर्ण रणनीति भी संकट में पड़ गई है।
वर्तमान स्थिति से बाहर निकलने के लिए सीरिया संकट, इराक़ में दाइशी संकट और यमन युद्ध सहित कई योजनाओं पर अमरीका और उसके घटकों ने काम किया लेकिन कोई भी योजना सफल नहीं हो सकी है। इसी तरह ईरानोफ़ोबिया फैलने की योजना से भी अमरीका और उसके घटकों को कोई लाभ नहीं मिल सकेगा।