प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुवैत की दो दिवसीय यात्रा पर हैं। करीब चार दशक से ज़्यादा समय के बाद कोई भारतीय प्रधनमंत्री कुवैत का दौरा कर रहा है। इस दौरे से पहले दोनों देशों के विदेश मंत्री एक-दूसरे देश की यात्रा कर चुके हैं।
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस वर्ष अगस्त में कुवैत का दौरा किया जबकि कुवैत के विदेश मंत्री अब्दुल्लाह अली अल याह्या इसी दिसंबर के पहले सप्ताह में भारत आए थे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को कुवैत आने का निमंत्रण भी दिया था। इसी वर्ष दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के दौरे ने एक माहौल बनाने के साथ मंच भी तैयार कर दिया है।
भारत और मध्य पूर्व के देशों के संबंध अब ऊर्जा सुरक्षा, सहयोग और कारोबार पर फोकस करते हैं। इसी क्रम में भारत और कुवैत के मध्य कारोबार को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किये गए हैं, इसके लिए इसी महीने कुवैती विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान साझा सहयोग कमीशन यानी जेसीसी भी स्थापित किया गया।
याद दिला दें कि इससे पहले 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बतौर भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत का दौरा किया था और अब 43 साल बाद भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत का सफर करेंगे।
हालाँकि साल 2009 में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी कुवैत का दौरा कर चुके हैं और इसे इंदिरा गांधी के दौरे के बाद किसी भारतीय राजनेता का सबसे महत्वपूर्ण कुवैत दौरा माना गया था। इसके अलावा 1965 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन ने कुवैत का दौरा किया था।
कुवैत के नेता भी भारत दौरे पर आए हैं। कुवैत के प्रधानमंत्री शेख जाबिर अल मुबारक अल हमाद अल सबाह ने साल 2013 में भारत का दौरा किया था। साल 2006 में कुवैत के तत्कालीन अमीर शेख सबाह अल अहमद अल जाबेर अल सबाह भारत का दौरा कर चुके हैं।
साल 1961 में भारत और कुवैत के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। शुरुआत में भारत ने कुवैत में ट्रेड कमिश्नर की नियुक्ति की थी। खास बात यह है कि इन दोनों देशों के बीच सीमित आवागमन के बावजूद दोनों के मध्य मज़बूत कारोबारी और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं।
दोनों देशों में ऐतिहासिक रूप से दोस्ताना संबंध रहे हैं। कुवैत में 1961 तक भारत का रुपया चलन में था। कुवैत में तेल मिलने से पहले भी दोनों देशों के बीच समुद्री रास्ते से व्यापार होता था।