सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामले में याचिका लंबित रहने के दौरान पत्नी को उसी तरह की सुविधाएं पाने की हकदार बताया है, जो उसे शादी के बाद ससुराल में मिलती हैं।
पीठ के मुताबिक़, इस दौरान अपीलकर्ता अपनी ससुराल में कुछ खास सुविधाओं की अभ्यस्त हो गई थी और इसलिए, तलाक याचिका के लंबित रहने के दौरान, वह उन्हीं सुविधाओं को पाने की हकदार है जिनकी वह अपनी ससुराल में हकदार होती।
न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने यह फैसला केरल के एक हार्ट स्पेशलिस्ट से अलग रह रहीं उनकी पत्नी को दिए जाने वाले अंतरिम गुजारा भत्ता के मामले में दिया। अदालत ने उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम गुजारा भत्ता कम कर दिए जाने को गलत बताते हुए इस राशि को बढ़ाकर एक लाख 75 हज़ार रुपये प्रति माह कर दिया है। बताते चलें कि मद्रास उच्च न्यायालय ने इस राशि को घटाकर 80 हज़ार रुपये प्रति माह कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय का कहना है कि तलाक की याचिका लंबित रहने के दौरान पत्नी उसी तरह की सुविधाएं पाने की हक़दार है जो उसे ससुराल में मिलतीं हैं।
पीठ का कहना है कि अपीलकर्ता कामकाजी नहीं हैं और उन्होंने शादी के बाद अपनी नौकरी छोड़ दी थी। साथ ही मामले में उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिवादी पति की आय के संबंध में कुछ पहलुओं की अनदेखी की बात भी पीठ ने कही है। इन बातों पर कुटुम्ब अदालत ने विचार किया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पति द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज और इस संबंध में दोनों पक्षों द्वारा पेश किये गए साक्ष्य से पता चलता है कि प्रतिवादी जानेमाने विशेषज्ञ हैं और उनके पास मूल्यवान संपत्तियां हैं तथा वह अपने पिता के एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी हैं जिनका निधन हो चुका है।
आगे पीठ ने बताया कि पति की मां की उम्र 93 वर्ष है। वह अपनी मां और अपनी सभी संपत्तियों से आय अर्जित कर रहे हैं। उनके पास एक स्कूल का स्वामित्व भी है जिसे नुकसान में बताया जा रहा है, लेकिन प्रतिवादी इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं कर सके।