वन्यजीव संगठन की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया भर में पक्षियों की आबादी तेजी से घट रही है। परिंदों की आबादी का लगातार घटना दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन नकारात्मक स्तर पर जारी है और इसमें बढ़ोत्तरी हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र कैली कोलंबिया में COP16 नामक दो सप्ताह के सम्मेलन का एजेंडा जलवायु परिवर्तन और जीवन की सुरक्षा है। इस बैठक में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की 2024 लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट में “केवल 50 वर्षों में औसत वन्यजीव आबादी में 73% की भयावह गिरावट” का विवरण दिया गया है।
तुर्की के वन्यजीव विशेषज्ञ अहमत एमरे कोटोकू का कहना है कि पक्षी किसी क्षेत्र में गिरावट के पहले चालक हैं। यदि पक्षियों की आबादी में गिरावट आ रही है, तो यह इशारा करता है कि कुछ गड़बड़ है।
लंदन की जूलॉजिकल सोसायटी के वैश्विक जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ. रॉबिन फ्रीमैन ने इस गिरावट के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में मनुष्य और गर्म होते ग्रह को ज़िम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि दोनों ही ऐसे तेज़ बदलाव की दिशा में बढ़ रहे हैं जिससे प्रजातियों के लिए सफलतापूर्वक अनुकूलन करना असंभव हो जाएगा।
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड यानी डब्ल्यूएफ तुर्की के वन्यजीव विशेषज्ञ अहमत एमरे कोटोकू ने तुर्की राज्य समाचार एजेंसी को बताया कि पक्षी किसी क्षेत्र में गिरावट के पहले चालक हैं। यदि पक्षियों की आबादी में गिरावट आ रही है, तो यह इशारा करता है कि कुछ गड़बड़ है।
पक्षियों की आबादी और प्रकृति के संतुलन के बीच संबंध का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक समय में यूरोप के खेतों में पक्षी भोजन करते थे। इनमें कीटनाशकों के प्रयोग से कीड़ों मकोड़ों की आबादी में कमी सामने आई और इसके नतीजे में परागण (pollination) भी कम हो गया।
अहमत एमरे आगे कहते हैं कि यदि शिकारी पक्षियों का अनुपात पर्याप्त होगा तो कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि इस दशा में चूहे भी कम होंगे। अमरीका और यूरोपीय देशों ने इस समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं, जिन्हें हमें भी लागू करना चाहिए।