नई दिल्ली। शेयर बाजार जहां नीतिगत ब्याज दर में कमी का इंतजार कर रहा है, वहीं छोटे निवेशकों और वेतनभोगी वर्ग को भी अपनी रिटायरमेंट सेविंग्स पर कम ब्याज के लिए तैयार हो जाना चाहिए। पिछले 6 महीनों में बॉन्ड यील्ड में तेज गिरावट आई है। इसलिए एंप्लॉयीज प्रविडेंट फंड (ईपीएफ) पर इस साल पिछले साल की तरह 8।8 पर्सेंट इंट्रेस्ट रेट मिलना मुश्किल है।वित्त मंत्रालय पब्लिक प्रविडेंट फंड (पीपीएफ) और सीनियर सिटीजंस सेविंग्स स्कीम सहित अन्य छोटी बचत योजनाओं पर भी ब्याज दरों में कटौती कर सकती है। छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दर सरकारी बॉन्ड यील्ड से जुड़ी है, जिसमें मार्च के बाद से 0।60-0।70 पर्सेंट की गिरावट आई है।
ईटी ने स्मॉल सेविंग स्कीम्स की ब्याज दरों के बारे में अनुमान लगाने के लिए 25 फाइनैंस प्रफेशनल्स से बात की। इनमें म्यूचुअल फंड मैनेजर, इन्वेस्टमेंट ऐनालिस्ट और इंडिपेंडेंट फाइनैंशल अडवाइजर्स शामिल थे। इनमें से 84 प्रतिशत ने कहा कि इस साल ईपीएफ रेट में कमी आएगी। वहीं, 64 प्रतिशत का मानना है कि स्मॉल सेविंग स्कीम्स की दरों में कमी आनी तय है। हालांकि, 32 प्रतिशत ने कहा कि यह मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, इसलिए सरकार हर तीन महीने पर इनकी दरों की समीक्षा नहीं करेगी।
ईपीएफ रिटर्न बढ़ाने के लिए एंप्लॉयीज प्रविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) नए निवेश में से 5 प्रतिशत रकम अगस्त 2015 से एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) में लगा रहा है। हालांकि, इसका मतलब यह भी है कि 95 प्रतिशत फ्रेश इनफ्लो को मौजूदा ब्याज दरों पर बॉन्ड में लगाया जाएगा। इस मामले में इंडिया लाइफ कैपिटल के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अमित गोपाल ने कहा, ‘ऐसे में इस साल पीएफ इंट्रेस्ट रेट में कमी आनी चाहिए।’ इंडिया लाइफ कैपिटल, पेंशन फंड्स को लीगल अडवाइजरी सर्विस देती है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ईपीएफ से शेयर बाजार में इतना कम पैसा लगाया जा रहा है कि उसका रिटर्न पर असर पड़ना मुश्किल है। आउटलुक एशिया कैपिटल के सीईओ मनोज नागपाल ने बताया, ‘ईपीएफ के कुल फंड में इक्विटी की हिस्सेदारी बमुश्किल एक प्रतिशथ है। इसका असर दिखने में कुछ साल का समय लगेगा।’ रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक स्टडी के मुताबिक, अगर नए निवेश में से सिर्फ 5 प्रतिशत रकम शेयर बाजार में लगाई जाती है तो कुल कॉरपस का 5 प्रतिशत तक पहुंचने में 15 साल का समय लगेगा। इसमें इक्विटी पर 12 प्रतिशत और डेट इनवेस्टमेंट पर 8 प्रतिशत रिटर्न का अनुमान लगाया गया है। सरकार इस लिमिट को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करना चाहती है। कुछ दिनों बाद श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय इस पर बातचीत के लिए ईपीएफओ के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की इमर्जेंसी मीटिंग बुला सकते हैं। उनकी दलील है कि पिछले साल अगस्त के बाद ईटीएफ में 7,500 करोड़ रुपये लगाए गए हैं, जो बढ़कर 8,500 करोड़ हो गए हैं। यह 12 प्रतिशत का पूरा रिटर्न है। वहीं, ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों का कहना है कि यह कागजी रिटर्न है, जो शेयर बाजार में गिरावट आने पर खत्म हो सकता है।
हिंद मजदूर सभा के सेक्रटरी अर्जुन देव नागपाल ने कहा, ‘शेयर बाजार स्पेकुलेटिव होता है। पिछले साल जब मार्केट में गिरावट आई थी, तब ईटीएफ में लगाई गई रकम की वैल्यू नेगेटिव हो गई थी। हम मजदूरों का पैसा रिस्की प्रॉडक्ट्स में नहीं लगा सकते।’ दक्षिणपंथी भारतीय मजदूर संघ भी इक्विटी मार्केट में ईपीएफ का अधिक पैसा लगाने के खिलाफ है। बीएमएस के नैशनल जनरल सेक्रटरी और सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के मेंबर वृजेश उपाध्याय ने कहा, ‘अगर इंट्रेस्ट रेट में गिरावट आती है तो इस साल हमें मान लीजिए कि 8।25 प्रतिशत का रिटर्न मिलेगा। यह कम से कम घटकर 5 प्रतिशत या 3 प्रतिशत तो नहीं होगा। लो इनकम कैटिगरी के लोग रिटायरमेंट सेविंग्स को शेयर जैसे रिस्की ऐसेट में नहीं लगा सकते।’ सरकारी अधिकारी इस दावे को गलत बताते हैं। सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के वाइस चेयरमैन और लेबर सेक्रटरी शंकर अग्रवाल ने कहा, ‘शेयर बाजार की अच्छी समझ नहीं होने के चलते इक्विटी में निवेश बढ़ाने का विरोध हो रहा है।’ उन्होंने कहा कि पिछले साल इन्वेस्टमेंट की वैल्यू माइनस में चली गई थी, लेकिन पर्याप्त समय देने पर इनसे अच्छा रिटर्न मिलेगा। अधिकतर फाइनैंशल एक्सपर्ट्स भी सरकार के रुख को सही मानते हैं। क्रिसिल के जे विद्याधरण ने कहा, ‘ग्लोबली 30 प्रतिशत रिटायरमेंट सेविंग्स शेयर बाजार में लगी है। भारत में ईपीएफ से हाल में इक्विटी ईटीएफ में निवेश शुरू किया है। यह कदम देर से, लेकिन सही दिशा में उठाया गया है।’