स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों को राहत देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. डीडब्ल्यू के खालिद मुहिउद्दीन का कहना है कि यही मदद उन्हें वापस भेजने के प्रयासों में उल्टी पड़ रही है.
म्यांमार में सांप्रदायिक हिंसा के बाद एक लाख से अधिक रोहिंग्या लोग देश छोड़ कर भागने पर मजबूर हुए और उन्होंने बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले में जा कर शरण ली. बौद्ध बहुल देश म्यांमार में यह समुदाय सालों से उत्पीड़न का सामना करता रहा है और वहां के अधिकारियों से इसे ना का बराबर ही मदद मिली है.
इसलिए यह तो साफ है कि म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों के लिए सुरक्षित जगह नहीं है. रोहिंग्या लोगों पर कार्रवाई के दो साल बाद बांग्लादेश सरकार उनमें से कुछ को म्यांमार वापस भेजने की कोशिश कर रही है. लेकिन जब तक म्यांमार रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सुरक्षा की गारंटी नहीं देता है, तब तक उन्हें अपने “वतन” वापस भेजना असंभव है. यही कारण है कि जब बांग्लादेश ने वापसी का अभियान शुरू किया तो कोई भी रोहिंग्या सामने नहीं आया.
यह स्थिति बांग्लादेशी अधिकारियों के लिए एक बड़ी चुनौती है. बांग्लादेश दक्षिण एशिया का ऐसा देश है जिसके पास सीमित संसाधन हैं और एक बड़ी आबादी है. बावजूद इसके इस देश ने दो साल पहले रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण दे कर बड़प्पन दिखाया. लेकिन उसे यह उम्मीद थी कि एक दिन वे अपने देश लौट जाएंगे. हालांकि अब तक ऐसा नहीं हुआ है.
संयुक्त राष्ट्र ने इसे म्यांमार में रोहिंग्याओं का “जातीय सफाया” कह कर कड़ी निंदा तो की है लेकिन वह अब तक म्यांमार पर दबाव बनाने और शरणार्थियों की वापसी के लिए सही स्थिति पैदा करने में विफल रहा है. अब यह स्पष्ट हो चुका है कि म्यांमार के अधिकारियों का उन्हें वापस लेने का कोई इरादा नहीं है, भले ही उन्होंने कई बार वापसी की प्रक्रिया शुरू करने की बात जरूर की है.
रोहिंग्या शरणार्थी अपने घर वापस जाना चाहते हैं लेकिन वे यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वहां उन्हें फिर से प्रताड़ित नहीं किया जाएगा. वे एक शिविर से दूसरे शिविर में भटकते नहीं रहना चाहते. फिलहाल उन्हें वापस भेजने की जो कोशिशें चल रही हैं वे उन्हें कॉक्स बाजार छोड़ कर बांग्लादेश के दूसरे हिस्सों में जाने या शायद भाग कर किसी दूसरे देश में जाने पर मजबूर कर सकती है.
दुनिया भर के मुस्लिम बहुल देशों ने रोहिंग्या लोगों के लिए समर्थन जरूर जताया है लेकिन उन्होंने वास्तव में उनकी मदद के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.
आसपास के अन्य देश, जैसे कि भारत, उन्हें लेने में कोई रुचि नहीं रखते हैं. चीन भी कह चुका है कि वह इस मामले में नहीं पड़ना चाहता. इसलिए बांग्लादेशियों को लगता है कि इस स्थिति से निपटने के लिए उन्हें अकेला छोड़ दिया गया है.
दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन रोहिंग्या शरणार्थियों को राहत देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वे उन्हें भोजन, चिकित्सा, और दूसरी मदद दे रहे हैं. बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को अभी भी कठिन स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन कम से कम उन्हें अपनी जान जाने का डर नहीं है.
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी