भारत की आधी से ज़्यादा आबादी गांवों में रहती है, जैसे-जैसे इस आबादी में स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है वैसे-वैसे वहीं रहने वालों की उम्मीदें भी बढ़ रही हैं। गांव गांव तक मुफ़्त इंटरनेट पहुंचाने के लिये किये गये भारत सरकार के वायदे को ग्रामीण भारत बहुत गंभीरता से ले रहा है। गांव के रहने वाले चाहते हैं कि इंटरनेट और टेक्नालाजी की तरक्की के इस दौर में गांवों और शहरों के बीच की खाई खत्म हो जाये।
गांवों में इंटरनेट और सोशल मीडिया को लेकर उत्सुकता और इसे इस्तेमाल करने की ललक शहरों से कहीं अधिक है, लेकिन गांव में इंटरनेट की स्पीड इसमें सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी है।
गांवों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में ज्यादातर युवा वर्ग होता है। जिनमें युवतियों की भी अच्छी खासी संख्या देखी जा रही है। ऐसे में लड़कियों के मन में कई तरह के सवाल भी आ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि तरक्की और विज्ञान के साथ टेक्नालाजी के इस दौर में इंटरनेट आज नहीं तो कल गांव गांव तक पहुंच जायेगा, लेकिन ये गांव वालों और ग्रामीण भारत की सोच बदले में कितना कारगर साबित होगा। वो भी ऐसे में जबकि गांव में आज भी लड़कियों के फेसबुक अकाउंट खोलने पर वो संदिग्ध हो जाती है और रूढ़िवादी विचारधारा के लोग बवाल पर आमादा हो जाते हैं।
आज से दस साल पहले ग्रामीण भारत में कंप्यूटर एक ख्वाब और अजूबा हुआ करता था। लेकिन अब गांव में कंप्यूटर से हर व्यक्ति परिचित हो चुका है। पंचायतों को एक क्लिक पर दुनिया से जोड़ने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारें बाकायदा योजनायें तैयार कर चुकी हैं।
सियासी पार्टियां भी तकनीक की इस बढ़ती लोकप्रियता की नब्ज वक्त से पहले ही टटोल चुकी हैं। उन्हें भी आभास हो गया है कि आने वाले कुछ वर्षों में चुनाव सोशल मीडिया पर लड़ा जायेगा, यानि चुनाव प्रचार में स्मार्ट फोन और इंटरनेट की भूमिका बेहद अहम हो जायेगी, क्योंकि गांव का युवा हाथों में स्मार्ट फोन और उस पर इंटरनेट ब्राउंजिंग के साथ वाट्स अप और फेसबुक के जरिये तमाम दुनिया पर नज़र रखते हुये सभी से संपर्क में आ रहा है।
गांव के युवाओं में फेसबुक, ट्विटर, जी-मेल और यू-ट्यूब जैसी ऐपलिकेशन्स का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। यही ग्रामीण भारत का भविष्य भी तय करेगा। बस जरूरत है तो लोगों को अपनी सोच बदलने की।