वर्तमान सऊदी अरब के मक्का नगर में स्थित अत्याधिक पवित्र स्थल काबा, पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए आस्था का केन्द्र है।
इस घर की चाभी रखना हमेशा से अरब जगत में गौरव का कारण रहा है। काबे की चाभी, मक्का के ” बनी शैबा” नामक खान्दान के हवाले की गयी है और यह खानदानव 1400 वर्षों से काबे की चाभी अपने पास रखता है।
ईश्वरीय दूत हज़रत इब्राहीम ने काबा की मरम्मत की थी उनके बाद उनके बेटे, हज़रत इस्माईल ने काबे की ज़िम्मेदारी संभाली और उनके बाद यमन से आए क़बीले,” जरहम” के हवाले यह ज़िम्मेदारी की गयी लेकिन अरब जगत के क़बीले ” बनी खुज़ाआ” की विजय के बाद यह क़बीला मक्का छोड़ने पर विवश हुआ और फिर हिजाज़ के दक्षिण से आए ” बनी खुज़ाआ” क़बीले ने काबे में मूर्तिया रख कर पूजा करना शुरु कर दिया और इस पवित्र घर की चाभी इस कबीले के पास पहुंच गयी।
बाद में पांचवी सदी ईसवी के मध्यकाल में क़ुरैश नामक क़बीले का मक्का पर प्रभाव बढ़ा और क़ुरैश क़बीले के सरदार ” क़ुसै बिन केलाब ” को काबे की चाभी और ज़िम्मेदारी मिली। यह क़बीला पैगम्बरे इस्लाम का था।
” क़ुसै बिन केलाब ” ने मरने से पहले अपने दोनों बेटों, ” अब्दुद्दार” “अब्दो मुनाफ” को काबे की चाभी सौंप दी।
मक्का पर मुसलमानों की विजय के बाद पैगम्बरे इस्लाम ने स्वंय यह ज़िम्मेदारी संभाली।
हालांकि काबे से संबंधित अधिकांश काम, पैगम्बरे इस्लाम के चचा और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कांधों पर था लेकिन चूंकि समाज में स्थिरता पैगम्बरे इस्लाम के लिए बहुत अहम था इस लिए उन्होंने काबे की चाभी, अब्दुद्दार परिवार के ” उस्मान बिन तलहा” और उसके चचेरे भाई ” शैबा बिन उस्मान” के हवाले कर दिया।
उस दिन के बाद से ” शैबा” परिवार को काबे की चाभी रखने का गौरव प्राप्त है। सदियां बीत गयीं , मक्का पर उस्मानियों से लेकर अंग्रेज़ों तक बहुत से लोगों ने क़ब्ज़ा किया लेकिन हर काल में काबे की चाभी ” शैबा” खानदान के पास रही।
काबे की अब तक 58 चाभियां बन चुकी हैं और कई पुरानी चाभियां, जो ताले बदलने की वजह से बेकार हो चुकी थीं, विश्व के विभिन्न संग्रहालयों में मौजूद हैं।
रोचक बात यह है कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलामने काबा बनाया था तो उसमें कोई भी दरवाज़ा नहीं था और कुछ इतिहासकारों के अनुसार 606 वर्ष ईसापूर्व इसमें पहला दरवाज़ा लगाया गया। यह गौरव भी कुरैश के कबीले को प्राप्त हुआ।