लखनऊ। गवर्नर के तौर पर उत्तर प्रदेश में अपना दो साल पूरा करने वाले राज्यपाल राम नाईक ने खुद अपने काम काज का लेखा जोखा पेश किया है। उन्होंने इस मौके पर“राजभवन में राम नाईक” नामक एक किताब का विमोचन भी किया। राम नाईक ने साल 2015-16 के दौरान किया गए सभी कामों को इस किताब के ज़रिये बताया है।
देश के सबसे बड़े सूबे के राज्यपाल के तौर पर काम करते हुए राम नाईक ने दो साल पूरे कर लिये हैं। इस मौके पर राजभवन में उन्होंने मीडिया के सामने अपने कार्यकाल के कामों को साझा किया। उन्होंने बीते साल के काम का ब्योरा सार्वजनिक करते हुए इस पर किताब भी जारी की है। इससे पहले भी उन्होंने एक साल पूरा होने पर “राजभवन में राम नाईक” किताब के जरिये किये कामों को साझा किया था। गुरुवार को राजभवन में मीडिया से मुखातिब होते हुये राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि उन्होंने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन किया है।
कामों को साझा करते हुये उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष 4विधेयक विचाराधीन थे, 24 विधेयक विधान मण्डल से पारित होकर उनकी अनुमति के लिये प्रेषित किये गये। जिसमें 20विधेयकों पर उन्होंने अनुमति प्रदान दी। 5 विधेयकों पर राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता होने पर उन्हें अग्रेषित किया। साथ ही 2 विधेयकों को राज्य विधान मण्डल के पुनर्विचार के लिये वापस भेज दिया। अभी राजभवन में 1विधेयक ‘उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015‘ विचाराधीन है।
लोक आयुक्त की नियुक्ति हेतु चयन समिति के तीनों सदस्यों में सहमति न बनने का भी उन्होंने जिक्र किया। अपनी किताब में उन्होंने इसे लेकर हुये पत्राचार और उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त किये गये लोक आयुक्त को शपथ ग्रहण कराने के संबंध में विस्तार से उल्लेख किया है।
राज्यपाल ने अपने कार्यवृत्त में रिपोर्ट की अवधि के तुलनात्मक आकडे़ भी प्रस्तुत किये हैं। राज्यपाल ने रिपोर्ट की अवधि 2015-16 में पिछले एक साल में उन्होंने राजभवन में 6,682 व्यक्तियों से मुलाकात कर उनकी बात सुनी।
राम नाईक लगातार 37 वर्ष से अपना वार्षिक कार्यवृत्त प्रस्तुत करते रहे हैं। जब वह सांसद थे तब ‘लोक सभा में राम नाईक‘ और सांसद न रहने पर ‘लोक सेवा में राम नाईक‘ शीर्षक से अपना वार्षिक कार्यवृत्त जनता के समक्ष पेश किया करते थे। यूपी के राज्यपाल के तौर पर वो दो साल से “राजभवन में राम नाईक” नाम से अपना कार्यवृत्त पेश कर रहे हैं।
कार्यक्रम के दौरान नाईक ने मीडिया के सवालों के जवाब भी दिये। उन्होंने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्यपाल का पद बेहद ज़रूरी होता है। गौरतलब है कि पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने राज्यपाल के पद को गैरजरूरी बताया था।
प्रेस से बातचीत के दौरान राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि अखिलेश सरकार में मंत्री आज़म खान ने उनके बारे में काफी कुछ गलत कहा है। आजम ने कहा था कि उन्हें राज्यपाल से डर लगता है। राम नाईक ने साफ तौर पर कहा कि आज़म खान को उनसे डरने की ज़रूरत नहीं है। उल्लेखनीय है कि बीते साल यूपी सरकार और सरकार के मंत्री आज़म खान से कई मसलों पर विवाद सामने आये थे।
यूपी को सियासी तौर पर बेहद संवेदनशील राज्य माना जाता है। यही वजह है कि यहां के राज्यपाल हमेशा ही देश के बाकी राज्यपालों से कहीं ज्यादा चर्चा में रहते हैं। बीते दो वर्षों में राम नाइक से साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। अखिलेश सरकार से कई बार उनकी अनबन की खबरें सामने आयीं। कभी लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर तो कभी विधान परिषद सदस्यों के नामों पर असहमति को लेकर। इस सबके बीच। रामनाईक पर अक्सर संवैधानिक मर्यादाओं से बाहर हटकर काम करने का आरोप भी लगता रहा। राज्यपाल राम नाईक हमेशा संवैधानिक दायित्वों की बात कहकर इन आरोपों को ख़ारिज करते रहे।