नई दिल्ली . महात्मा गांधी के पौत्र गोपालकृष्ण गांधी राष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार हो सकते हैं. जुलाई में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है. लिहाजा राष्ट्रपति चुनावों की सुगबुगाहट तेज होने लगी है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के खेमों की तरफ से नित नए नामों की चर्चाएं हो रही हैं. विपक्ष इस कड़ी में एकजुटता दिखाते हुए संयुक्त उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रहा है. इस कड़ी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर विपक्ष के कई बड़े नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर चुके हैं. हालांकि सूत्रों के मुताबिक इस बात की भी चर्चा चल रही है कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पर शायद सहमति नहीं बन सके इसलिए एक ऐसे प्रत्याशी की तलाश हो रही है जिस पर मोटेतौर पर विपक्ष के सभी दलों के बीच सहमति बन सके. लिहाजा इस क्रम में गोपालकृष्ण गांधी का नाम उभर कर आया है. गोपाल गांधी महात्मा गांधी के पौत्र हैं. वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राजनयिक रहे हैं और सिविल सोसायटी की नामी शख्सियत हैं. सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव के लिए लगभग विपक्ष के सभी दलों के बीच पहले राउंड की शुरुआती चर्चा पूरी हो गई है. इसी कड़ी में गोपालकृष्ण गांधी का नाम उभरा है और किसी ने अभी उनके नाम पर ऐतराज नहीं जताया है.
दरअसल इसके पीछे भी सियासी वजहें हैं. महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र गोपाल गांधी की पारिवारिक जड़ें गुजरात में हैं. इस लिहाज से विपक्ष का मानना है कि उनके उम्मीदवार बनने से पीएम मोदी के लिए भी राजनीतिक स्थिति सहज नहीं होगी. संभवतया इन्हीं वजहों से नीतीश-लालू से लेकर सपा और बसपा को उनकी उम्मीदवारी सूट करती है. कांग्रेस से भी गोपाल गांधी के अच्छे रिश्ते हैं. उसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि कांग्रेस ने ही 2004 में उनको पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था. उस दौरान पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के समय गांधी की राज्यपाल के रूप में सक्रियता की तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी भी प्रशंसक रहीं. इस लिहाज से माना जा रहा है कि तृणमूल भी उनके नाम पर मुहर लगाने में गुरेज नहीं करेगी.
इस संबंध में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक विपक्षी दलों ने उनसे संपर्क भी साधा है. गोपाल गांधी ने इस बारे में एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, ”हां, मुझसे इस सिलसिले में बात की गई है. लेकिन यह बातचीत बेहद शुरुआती स्तर की है. इसके आगे फिलहाल कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा.”
उल्लेखनीय है कि नौकरशाह से लेकर राजनयिक राजदूत के लंबे अनुभव के धनी गांधी लेखन और बौद्धिक जगत में अपनी खास पहचान रखते हैं.