कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक अध्ययन ने ब्रह्मांड में जीवन की संभावनाओं को लेकर एक नई उम्मीद जगाई है।
अध्ययन से संकेत मिले हैं कि पृथ्वी से करीब 120 प्रकाश वर्ष दूर एक ऐसा खगोलीय पिंड हो सकता है, जहां जीवन मौजूद हो सकता है।
‘एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स’ में पिछले सप्ताह प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि 2-18बी नामक सुदूर ग्रह पर वैज्ञानिकों को जीवन के संकेत मिले हैं। हालाँकि इसे लेकर खगोलविद संशय में हैं और उनका कहना है कि अध्ययन के परिणामों और कार्यप्रणाली की अन्य शोधकर्ताओं द्वारा भी जांच-पड़ताल की जानी चाहिए।
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित के2-18बी नामक एक एक्सोप्लैनेट पर जीवन के संकेतों की खोज की है। इस ग्रह के वायुमंडल में उन्हें डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड अणुओं के निशान मिले हैं, जो पृथ्वी पर समुद्री जीवों द्वारा उत्पन्न होते हैं।
‘एक्सोप्लैनेट’ ऐसे ग्रह होते हैं, जो हमारे सौर मंडल से बाहर, अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं। ‘एक्सोप्लैनेट’ के वायुमंडल पर डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड अणुओं के निशान पाए गए हैं। इन अणुओं का उत्पादन पृथ्वी पर समुद्री जीवों द्वारा माना जाता है।
बताते चलें कि हमारी धरती के वजूद में आने को लेकर सबसे आम परिकल्पना यह है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समुद्र में हुई है।
इस बारे में बाह्यग्रहीय विज्ञान के प्रोफेसर और खगोल भौतिकी के जानकार निक्कू मधुसूदन के नेतृत्व वाली अनुसंधान टीम का दावा भी गौर किए जाने लायक है। टीम का कहना है कि यह अध्ययन ‘तीन सिग्मा’ के महत्व का साक्ष्य प्रदान करता है कि सौरमंडल के बाहर जीवन के सबसे मजबूत संकेत 99.7 फीसदी तक आकस्मिक नहीं हैं।
निक्कू मधुसूदन ने पिछले सप्ताह एक साक्षात्कार में कहा कि अध्ययन के निहितार्थों के दायरे को देखते हुए, उनकी टीम भविष्य के शोधों में परिणामों की मजबूती से पुष्टि करने का प्रयास कर रही है।
एनआईएसईआर यानि राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान भुवनेश्वर के पृथ्वी एवं ग्रह विज्ञान स्कूल के रीडर जयेश गोयल का मानना है कि अध्ययन के निष्कर्ष एक बड़ा कदम हैं और यह बहरी ग्रहों के वायुमंडल और उनके रहने योग्य होने के बारे में हमारी समझ का विस्तार करता है।
जयेश गोयल का कहना है- ”के2-18बी के वायुमंडल पर किए गए अवलोकनों से यह पता चलता है कि उप-नेप्च्यून या सुपर-अर्थ एक्सोप्लैनेट की इस श्रेणी को किस हद तक चिह्नित किया जा सकता है, क्योंकि इन लक्ष्यों का अध्ययन करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।”
आगे गोयल का कहना है कि वेब टेलीस्कोप काकी मदद से 2-18बी के और अधिक अवलोकन, डाइमिथाइल सल्फाइड और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड के प्रयोगशाला स्पेक्ट्रा की व्यापक पड़ताल से अध्ययन के परिणामों को साबित करने अथवा उन पर सवाल यथाने में सहायता मिलेगी।