लंदन में होने वाले एक नए अध्ययन से पता चलता है कि जीवन के पहले वर्ष में शिशुओं के लिए स्तनपान कितना ज़रूरी है। मां का दूध बच्चे के शरीर को एक सेहतभरी खुराक देने के साथ अस्थमा के जोखिम को कम करता है।
‘बचपन में अस्थमा के विकास के जोखिम को कम करने में स्तनपान की महत्वपूर्ण भूमिका है’ इस विषय पर अमरीकी शोधकर्ताओं के अलावा कनाडा, नेपाल और यूके के एक समूह द्वारा शोध किया गया। दोनों अध्ययनों के शोधकर्ताओं ने पाया कि स्तनपान से सात या उससे कम उम्र के बच्चों में अस्थमा होने की संभावना कम हो जाती है।
शोध से खुलासा हुआ कि स्तन के दूध में जटिल शर्करा और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो बच्चों की आंतों में स्वस्थ रोगाणुओं के विकास को बढ़ावा देते हैं।
क्योंकि मां के दूध में माइक्रोबायोटा, पोषक तत्व, हार्मोन और वृद्धि कारक होते हैं जो एक साथ फेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास को प्रभावित करते हैं।
शोधकर्ताओं ने जर्नल सेल में रिपोर्ट दी है कि निष्कर्षों से पता चलता है कि तीन महीने से अधिक समय तक स्तनपान कराने से बच्चे की आंत में माइक्रोबायोम को धीरे-धीरे परिपक्व होने में मदद मिलती है।
दूसरी ओर शोधकर्ताओं ने बताया कि तीन महीने से पहले स्तनपान बंद करने से माइक्रोबायोम का विकास बाधित होता है और यह प्रीस्कूल अस्थमा के उच्च जोखिम से जुड़ा होता है।
गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश छह महीने तक केवल स्तनपान कराने की सलाह देते हैं। शोध से पता चलता है कि जो बच्चे छह महीने तक केवल स्तनपान कराने के दिशा-निर्देशों को पूरा नहीं करते हैं, उन्हें आंशिक या रुक-रुक कर स्तनपान कराने से अस्थमा के विकास के खिलाफ़ कुछ सुरक्षा मिल सकती है।