लॉस एंजिलिस: अवसाद एक वैश्विक महामारी की तरह बड़ी तेजी से युवाओं और बूढ़ों को अपनी चपेट में ले रही है। विशेषज्ञ अब इस बात पर जोर देते हैं कि सकारात्मक सोच की आदत अपनाकर, नकारात्मक सोच पर काबू पाना मुमकिन है।
‘साइकोपैथोलॉजी एंड क्लिनिकल साइंस’ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, डिप्रेशन के खिलाफ लड़ाई में एक नया हथियार सामने आया है। यह हथियार है- सकारात्मक सोच और आशा की किरण। इस हथियार की बदौलत भविष्य में अवसाद के हमले को कमजोर करके इस मर्ज़ पर काबू पाना आसान है।
आशावान लोग अपने नज़रिए के बूते अवसाद को खत्म करने में हमेशा कामयाब होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में इस समय 8% से अधिक आबादी गंभीर अवसाद से पीड़ित है, ये समस्या हमारे देश में भी बढ़ रही है। अकसर उपचार और दवा के बाद भी अवसाद फिर से लौट आता है और दैनिक जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स की एलेना वेन और उनके सहयोगियों ने 44 अध्ययनों और सर्वेक्षणों की समीक्षा की। इसमें 2000 से अधिक लोग शामिल थे जो गंभीर अवसाद से पीड़ित थे। इसके साथ ही 2285 ऐसे लोगों की भी पड़ताल की गई जो मानसिक रूप से बिलकुल स्वस्थ थे।
समीक्षा में पाया गया कि जो लोग अवसाद में डूबे हुए थे, उनमें नकारात्मक सोच और चीजों के अंधेरे पक्ष को देखने का एक लंबा इतिहास था। उनमे यह आदत घर कर गई, फिर लोग अधिकांश दिन दुखी रहने लगे और धीरे-धीरे पूरी तरह से अवसाद के मरीज बन गए। इन लोगों ने खुश रहने और अच्छे पक्ष के बारे में सोचने की कोशिश करना भी बंद कर दी थी।
शोध के अनुसार, इससे दोबारा अवसाद की पुनरावृत्ति को भी रोका जा सकता है। हालाँकि, यह महत्वपूर्ण है कि रोगी को स्वयं अपने स्वास्थ्य की चिंता करनी होगी और जीवन में सकारात्मक पहलुओं पर विचार करना होगा।