25 और 26 जुलाई को बहरैन की राजधानी मनामा में फ़िलिस्तीन समस्या के समाधान के लिए अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की डील ऑफ़ द सेंचरी के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया।
इस वर्कशाप के आयोजन से पहले ही व्हाइट हाउस ने इस डील के एक भाग “समृद्धि के लिए शांति” नामक योजना को सार्वजनिक कर दिया था।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के दामाद और वरिष्ठ सलाहकार जेर्ड कुशनर के नेतृत्व में तैयार की गई डील ऑफ़ द सेंचरी की इस योजना के तहत फ़िलिस्तीनियों के लिए 50 अरब डॉलर का एलान किया गया और मनामा वर्कशॉप में इस राशि को कैसे ख़र्च किया जाए, इसके लिए रोडमैप तैयार किया गया।
Trump's 'Deal of the century':
– #Palestinians to give up 60% of West Bank
– Forbid them to have army
– Make them pay #Israel for protection
– And if they refuse, #US will sanction them to kingdom comehttps://t.co/csEDj283i6 pic.twitter.com/HyKnYtRpKm— RT (@RT_com) June 25, 2019
इसके पीछे एक ही मक़सद है, एक स्वतंत्र और स्वाधीन फ़िलिस्तीन देश की स्थापना के फ़िलिस्तीनियों के सपने पर हमेशा के लिए पानी फेर देना और गज़्ज़ा तथा पश्चिमी तट में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों को एक नया सपना दिखाना, जिसमें उनका यह इलाक़ा एक नया दुबई या सिंगापुर बन जाता है।
हालांकि फ़िलिस्तीनियों ने एकमत होकर इस योजना को रद्द कर दिया है और उन्होंने मनामा वर्कशॉप का भी पूर्ण रूप से बहिष्कार किया।
यहां हम ऐसे 7 महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख कर रहे हैं, जो ट्रम्प की इस योजना की विफलता का अहम कारण हैं।
इस योजना में जहां फ़िलिस्तीनियों की अर्थव्यवस्था को कैसे बढ़ावा दिया जाए? इस पर काफ़ी दिमाग़ खपाया गया है, वहीं फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर इस्राईल के क़ब्ज़े का ज़िक्र तक नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर अगर इस्राईल का क़ब्ज़ा नहीं होता यहां की अर्थव्यवस्था इस वक़्त मौजूदा अर्थव्यवस्था की दोगुना होती। यहां तक कि इस योजना में अवैध क़ब्ज़ा, घेराबंदी, परिवेष्टन, फ़िलिस्तीनियों की भूमि पर यहूदियों की ग़ैर क़ानूनी बस्तियों के निर्माण जैसे शब्द तक नदारद हैं।
दूसरा एक अहम शब्द जो इस योजना के पन्नों से ग़ायब है, वह है शरणार्थी… 20 लाख से ज़्याजा फ़िलिस्तीनी शरणार्थी ग़ज्ज़ा में और 50 लाख से अधिक पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं। ट्रम्प की इस योजना में फ़िलिस्तीनियों की इतनी बड़ी जनसंख्या को पूर्ण रूप से नज़र अंदाज़ कर दिया गया है, जिसके बिना फ़िलिस्तीनी समस्या का कोई समाधान सफल नहीं हो सकता।
Trump's 'deal of the century' falls flat in West Bank https://t.co/rK6pdDDqa7
— BBC News (World) (@BBCWorld) June 25, 2019
जैसा कि ट्रम्प ने पहले भी कहा था, मुसलमानों के तीसरे सबसे पवित्र धार्मिक स्थल बैतुल मुक़द्दस का इस योजना में कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। ट्रम्प ने इस पवित्र शहर को इस्राईल की राजधानी घोषित कर दिया है। पूर्वी बैतुल मुक़द्दस में क़रीब 3 लाख फ़िलिस्तीनी रहते हैं, जबकि इस्राईल ने अंतरराष्ट्रीय क़ानून के विपरीत इस इलाक़े का भी अवैध अधिकृत इलाक़ों में विलय कर लिया है।
फ़िलिस्तीनी समस्या के समाधान के दावे के साथ तैयार की गई इस योजना में फ़िलिस्तीनियों की मूल मांग स्वाधानी फ़िलिस्तीनी देश को पूर्ण रूप से नज़र अंदाज़ कर दिया गया है।
अमरीका की आज भी पहली प्राथमिकता इस्राईल को हथियारों की आपूर्ति करना है। कुशनर की इस योजना के तहत 50 अरब डॉलर के आर्थिक पैकेज में से केवल आधी राशि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीनियों की अर्थव्यवस्था पर अगले 10 वर्षों में ख़र्च होगी, जबकि 2016 के समझौते के मुताबिक़, अमरीका अगले 10 वर्षों में इस्राईल को 38 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देगा।
1948 के बाद से निरंतर ज़ायोनियों द्वारा फ़िलिस्तीनियों से छीनी गई उनकी भूमि के बारे में भी इस योजना में कुछ नहीं कहा गया है।
“समृद्धि के लिए शांति” नामक योजना के तहत फ़िलिस्तीनी केवल उपभोक्ता बनकर रह जायेंगे न कि नागरिक।
फ़िलिस्तीनी 5जी यूज़ करें और केख खाएं। व्यापारियों के एक समूह द्वारा तैयार की गई इस योजना में ग़ज्ज़ा को एक मैट्रोपोलिटिन सिटी में बदलने और ऑनलाइन ई-गवर्नमेंट तथा फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में 5जी की व्यवस्था की बात कही गई है। हालांकि ग़ज्ज़ा की आधी से ज़्यादा आबादी ग़रीबी की रेखा के नीचे और पूरी आबादी मौलिक ज़रूरतों के अभाव में जीवन गुज़ारने पर मजबूर है।
ग़ज्ज़ा को दूसरा रियो बनाने का दावा किया गया है। इस योजना में ग़ज्ज़ा के 40 किमी के मेडिटेरेनियन क्षेत्र को रियो डी जेनेरियो या सिंगापुर के समान विकसित करने की बात कही गई है।
साभार :parstoday.com