नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पटना की एचआईवी पीड़ित रेप विक्टिम को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया. महिला का गर्भ 27 सप्ताह का हो चुका है, कोर्ट ने ये फैसला एम्स दिल्ली के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर सुनाया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भपात कराने की स्थिति में महिला की जान को खतरा हो सकता है. कोर्ट ने बिहार सरकार को आदेश दिया है कि चार सप्ताह के अंदर महिला को मुआवजे के 3 लाख रुपए दे दिए जाएं.
इस महिला ने अपनी याचिका में कहा कि वो 17वें हफ्ते में गर्भपात कराने पटना के अस्पताल में गई थी. हालांकि, तब पटना हाईकोर्ट और पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ने महिला की आइडेंटिटी प्रूफ नहीं होने का हवाला देते हुए गर्भपात करने से इनकार कर दिया था. बता दें कि इस महिला को उसके पति ने छोड़ दिया है और उसके अपने परिवार ने उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने का हवाला देते हुए उसे अपनाने से इनकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अस्पताल की इस बात को लेकर खिंचाई भी की कि जब 17वें सप्ताह में महिला गर्भपात के लिए पहुंची तो उससे अपने पति या पिता की अनुमति लाने के लिए क्यों कहा गया? कोर्ट ने कहा कि भाई, पिता या पति से अनुमति क्यों ली जानी चाहिए जबकि गर्भवती महिला खुद गर्भपात कराना चाहती थी?
आपको बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत गर्भ धारण करने के 20 सप्ताह के अंदर ही कानूनी रूप से गर्भपात कराया जा सकता है.
कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि एम्स के डॉक्टरों की टीम महिला के लिए मेडिकल ड्राफ्ट तैयार करके देगी. इस ड्राफ्ट के आधार पर महिला का ख्याल रखा जाएगा ताकि उसके होने वाले बच्चे को एचआईवी के संक्रमण से बचाया जा सके.
35 वर्षीय इस महिला के साथ पिछले साल पटना की सड़कों पर बलात्कार हुआ था, बाद में उसे एक स्थानीय एनजीओ ने रेस्क्यू किया. एनजीओ द्वारा मेडिकल जांच कराए जाने पर पता चला कि महिला गर्भवती है. इसके बाद महिला ने गर्भपात की इच्छा जाहिर की, हालांकि पटना हाईकोर्ट और पटना मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी. इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.