सहारनपुर , सहारनपुर की सड़क दूधली गांव में पत्थरबाजी की घटना के बाद अब सन्नाटा पसरा है. गांव में पीएसी और पुलिस बल तैनात है. अंबेडकर जयंती और संत रविदास जयंती के नाम पर गांव में यात्रा निकालने के बाद हुए पथराव और हिंसा के चलते दहशत का माहौल है. सिर्फ गांव ही नहीं जिले के SSP लव कुमार का परिवार भी सदमे में है.
सहारनपुर जिले के गांव सड़क दूधली से इस पूरे बवाल की शुरुआत हुई. 20 अप्रैल को इस गांव में अंबेडकर रोड पर संत रविदास जयंती के नाम पर शोभायात्रा निकाली गई. सहारनपुर जिले के जनकपुर थाने में दर्ज FIR के मुताबिक 20 अप्रैल को अशोक भारती नामक शख्स ने सडक दूधली गांव में शोभायात्रा निकाली.
दर्ज FIR के मुताबिक अंबेडकर जयंती के नाम पर निकली शोभायात्रा के लिए प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई थी. जैसे ही शोभायात्रा गांव दूधली पहुंची, बीजेपी के सांसद राघव लखन पाल, उनके भाई राहुल लखन पाल, देवबंद से बीजेपी विधायक प्रदेश समेत सैकड़ों समर्थक जबरन यात्रा निकालने का प्रयास करने लगे. FIR कहती है कि तमाम लोग पुलिस के द्वारा लाख मना करने के बावजूद जबरन आगे बढ़ते हुए उत्तेजक नारे लगाते रहे, जिसके बाद दूसरी तरफ खड़े मुस्लिम संप्रदाय द्वारा पथराव शुरू हुआ.
सड़क दूधली गांव में 20 तारीख को हो इस घटना के चश्मदीद मुखिया खादिम हुसैन ने आजतक से बातचीत में बताया कि वह इस दौरान मौका-ए-वारदात पर ही खड़े थे. मोहम्मद के मुताबिक पुलिस के लाख मना करने के बावजूद यात्रा गांव में दाखिल होना चाहती थी और जब प्रशासन ने उन्हें आने से मना किया तो जुलूस में शामिल लोगों ने पथराव किया, इसके जवाब में मुस्लिम समाज की ओर से भी जवाबी पथराव किया गया. खादिम हुसैन ने भी कहा कि जुलूस के साथ बीजेपी सांसद राघव लखन पाल मौजूद थे. 18 साल के मोहम्मद कैफ का दावा है कि पथराव पहले जुलूस में आए लोगों की ओर से शुरू हुआ.
गांव में हमारी मुलाकात अजमल से हुई. अजमल ने बताया, ‘उस दिन गांव के लोगों को पता चला था कि बाहर के कुछ लोग जुलूस ला रहे हैं. सारे लोग बाहर के थे सांसद राघव लखन पाल थे और भाजपा के कई सारे लोग भी थे. जब पुलिस ने उन्हें अंदर आने से रोका तो उन्होंने पथराव शुरू कर दिया. उसके बाद इस तरफ से भी पथराव हुआ. 67 साल हो गए इसके पहले ऐसी कोई यात्रा नहीं निकली. जब किसी नई परंपरा के लिए कोई इजाजत नहीं ली गई, इसलिए यह विवाद हुआ. कई साल पहले मस्जिद में मीट भी फेंका गया था.
डॉ. अंबेडकर ने तो सबके लिए संविधान लिखा था, सब का ख्याल रखा था. दंगा फसाद करना और बाहर के लोगों का पत्थर और औजार लेकर आना, यह सब राजनीति है, क्योंकि महापौर का चुनाव आ रहा है और राघव लखन पाल चाहते हैं उनका भाई महापौर हो जाए. मुसलमान अलग हो जाएं और हिंदू दलित उनकी तरफ हो जाएं.’ अजमल की मानें तो यह बवाल इस साल जुलाई में होने वाले सहारनपुर के निकाय चुनाव के लिए किया गया था. सड़क दूधली गांव अब सहारनपुर निगम के अंतर्गत आता है और इस साल जुलाई में पहली बार इस निगम में चुनाव भी होने वाले हैं.
गांव के हाफिज मोहम्मद नोमान ने कहा कि पत्थरबाजी के घटना के दौरान वह भी वहां पर मौजूद थे. नोमान ने कहा कि जुलूस में आए लोगों ने पहले पुलिस पर पथराव किया जिसके बाद मुस्लिम समाज ने भी जवाब मैं पथराव किया. हमने नोमान से पूछा कि आखिर अंबेडकर या संत रविदास जयंती के नाम पर जुलूस निकालने से मुस्लिम समाज को क्या परेशानी हो सकती है?
इस पर नुमान ने कहा कि इस गांव में ऐसा कोई नियम है ही नहीं तो फिर जबरदस्ती क्यों की जा रही है? हाफिज मोहम्मद नोमान ने कहा कि अगर जुलूस निकालना था तो गांव वालों से पहले बात की जानी चाहिए थी, तब यात्रा निकाली जानी चाहिए थी.
नोमान के साथ खड़े लोगों ने बताया की जुलूस में आए लोगों में से कोई भी गांव के दलित समाज नहीं था, बल्कि बाहर के लोग थे. मुस्लिम समाज के तमाम लोगों ने कहा की यात्रा के नाम से उन्हें आपत्ति नहीं है बशर्ते जयंती की यात्रा प्रशासन से अनुमति लेकर हो.
पहले नहीं थी जुलूस की परंपरा
सहारनपुर के एसएसपी लव कुमार ने भी यही कहा. लव कुमार के मुताबिक सड़क दूधली गांव में इसके पहले कभी भी अंबेडकर या संत रविदास जयंती के नाम पर शोभायात्रा निकालने की प्रथा नहीं थी और प्रशासनिक आदेश थे कि गैर परंपरागत शोभायात्राओं को ना होने दिया जाए. कानून व्यवस्था खराब होने से रोकने के लिए 14 अप्रैल को प्रस्तावित शोभा यात्रा के लिए अनुमति नहीं दी गई.
एसएसपी लव कुमार ने कहा कि 14 अप्रैल को शोभायात्रा निकाली जाने के लिए उन्हें आवेदन मिला था, लेकिन लोकल थाने की रिपोर्ट के बाद यात्रा निकालने की इजाजत नहीं दी गई. SSP के मुताबिक या यात्रा गैर परंपरागत थी और नियमों के मुताबिक इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती थी और शायद यही वजह थी जिसके बाद 20 तारीख की घटना हुई.
SSP साहब की माने तो अनुमति मांगने वाले गुट को नियमों के तकाजे से ज्ञात करा दिया गया था. रैली की इजाजत प्रशासन ने नहीं दी थी,बावजूद लोकल इंटेलिजेंस के रिपोर्ट कहती है 19 अप्रैल को ही गांव में कुछ तत्वों द्वारा शोभायात्रा निकाले जाने की बात सामने आई थी. सहारनपुर पुलिस के मुताबिक 14 अप्रैल की यात्रा निकालने के लिए बजरंग दल के विक्रमणाजीत ने अर्जी दी थी, लेकिन लोकल इंटेलिजेंस और स्थानीय पुलिस की रिपोर्ट पर प्रशासन ने इस शोभा यात्रा की अनुमति देने से इंकार कर दिया था.
इतना ही नहीं SSP लव कुमार ने आजतक को बताया की 20 अप्रैल की शोभा यात्रा के ठीक 1 दिन पहले उन्हें लोकल इंटेलिजेंस से इस बारे में जानकारी मिल गई थी, जिसके बाद गांव में प्रशासनिक बंदोबस्त तैनात कर दिया गया था. इतना ही नहीं जब जुलूस लेकर BJP सांसद और उनके समर्थक गांव में पहुंचे तो उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की गई.
इस पूरे मामले में कुछ और तथ्य सामने आए हैं. इसके पहले सड़क दूधली गांव में कभी भी अंबेडकर और संत रविदास जयंती के नाम पर शोभायात्रा नहीं निकाली गई. हालांकि 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के अवसर पर गांव में दलित समाज द्वारा भंडारा जरूर होता है, लेकिन इस पर कभी गांव में विवाद नहीं हुआ.
पड़ताल में दूसरी बात सामने आई कि 7 साल पहले इसी तरीके से संत रविदास जयंती के मौके पर शोभा यात्रा निकालने की कोशिश की गई थी, जिसकी अनुमति रद्द होने के बाद प्रशासन की ओर से गांव में ऐसे किसी भी गैर परंपरागत शोभा यात्रा की मनाही के आदेश दिए गए थे.
बाहरी लोग थे शोभायात्रा में!
मायावती के शासनकाल में ही ग्राम दूधली गांव सहारनपुर निगम के अधीन आ गया और इस बार पहली बार वह मौका होगा जब दूधली गांव के लोग स्थानीय निगम चुनाव के लिए वोट डालेंगे. गांव में आगे हमारी मुलाकात मुस्लिम समाज के कई और लोगों से हुई और ज्यादातर का यही कहना था कि इस गांव में 1500 मुस्लिम परिवार और 600 दलित परिवार बड़े ही सुकून से रहते रहे और कभी कोई विवाद नहीं हुआ.
छुटपुट घटनाएं जरूर हुई, लेकिन इससे गांव की शांति भंग नहीं हुई. गांव में बुजुर्ग और मुस्लिम समाज के सर्वे सर्वा मुखिया अब्दुल माजिद का भी दावा वही है की शोभायात्रा लेकर आए लोग इस गांव के नहीं बल्कि बाहरी थे. यह सवाल उठता है कि क्या जानबूझकर इस गांव की शांति को भंग करने की कोशिश की जा रही थी? या फिर अंबेडकर और संत रविदास जयंती की शोभा यात्रा को लेकर मुस्लिम समुदाय को आपत्ति थी?
मुस्लिम समुदाय के तमाम लोगों ने बातचीत में यह माना की शोभा यात्रा से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, बशर्ते यह गांव वालों की मंजूरी और प्रशासन की अनुमति से हो. मुस्लिम समुदाय से बात करने के बाद हम गांव के दूसरे छोर पर गए जहां दलित समुदाय रहता है. 20 तारीख को हुए बवाल के बाद गांव में सन्नाटा पसरा है और लोगों में दहशत का माहौल है.
दलित समाज के लोग खुलकर इस मामले पर कुछ भी बोलने से बचते रहे. लेकिन बातचीत में जो सच सामने आया वह यही था की यात्रा लेकर के गांव में आए लोग इस गांव के नहीं बल्कि बाहरी लोग थे. दलित समाज के लोग भी मानते हैं कि इस गांव में पहले दोनों समुदायों के बीच कभी कोई बवाल नहीं हुआ.
20 तारीख को जुलूस का विरोध करने के बाद लखन पाल और उनके समर्थक सहारनपुर के एसएसपी लव कुमार के घर पहुंच गए. तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि लखन पाल अपने समर्थकों के साथ भारी हुजूम में जबरन SSP के घर में घुस गए. जब यह वाकया हुआ तब लव कुमार अपने घर में मौजूद नहीं थे. इस मामले में भी भी सहारनपुर पुलिस ने कई लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.
FIR के मुताबिक 20 अप्रैल को दोपहर के ढाई बजे एसएसपी लव कुमार के घर के मेन गेट से स्थानीय बीजेपी सांसद लखन पाल अपने समर्थकों के साथ उत्तेजक नारेबाजी और पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए आवाज के अंदर जबरन घुस आए.
शोर-शराबे और बवाल के बाद घर में मौजूद SSP लव कुमार की पत्नी शक्ति और उनके दोनों बच्चे काफी घबरा गए. खुद एसएसपी लव कुमार ने आजतक से बातचीत में बताया कि भीड़ को घर में आता देख उनका परिवार सदमे में था. आज भी SSP लव कुमार को उनके दोस्तों और रिश्तेदारों के फोन आ रहे हैं जो उनका हालचाल जानना चाहते हैं.
मामले में अब तक 6 FIR दर्ज हो गई है पर SSP लव कुमार की मानें तो अब तक 10 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी भी हो गई है. लेकिन बीजेपी सांसद राघव लखन पाल, जुलूस में शामिल देवबंद विधायक बृजेश समेत कई बड़े नाम पुलिस की गिरफ्त से अभी भी बाहर हैं. बड़ा सवाल उठ रहा है कि जब उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दलों के सांसद और विधायक खुलेआम दबंगई दिखा रहे हैं और खुद प्रशासनिक अमला इनसे पीड़ित है तो उत्तर प्रदेश में आम आदमी का क्या होगा.