(फरमान अब्बास मन्जुल )
लखनऊ। मुलायम कुनबे में दरार और टूट के मुहाने पर पहुंचाने के लिये बाहरी आदमी यानि अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। मुलायम के मौजूदा सियासी वारिस अखिलेश खुलकर सार्वजनिक मंच से कह रहे हैं कि अब अंकल उन्हें गवारा नहीं। ये वही अमर सिंह हैं जिन्हें मुख्यमंत्री गुजरे दौर में अमर अंकल कहकर पुकारते थे। ऐसा क्या हुआ कि अंकल अब अखिलेश की नजर में सबसे बड़े विलेन हो गये। ऐसा नहीं है कि अमर सिंह के साथ अखिलेश के रिश्ते हमेशा से ही खराब रहे हैं।
अखिलेश से अमर के रिश्ते बिगड़ने तब शुरू हुये जब 2007 में मुलायम की पार्टी विधान सभा चुनाव हार गयी। अखिलेश सैफई के आंगन से निकलकर यूपी के सियासी मैदान में कुलांच भरने लगे। मुलायम के मुख्यमंत्री रहते समाजवादी पार्टी की सियासत और सूबे को अपने ही अंदाज़ में चलाने वाले अमर सिंह ने पार्टी में भविष्य के नेता के तौर पर उभर रहे अखिलेश को भी उसी तरह डील करना शुरू किया जैसे माज़ी में मुलायम को करते रहे थे। यहीं से अखिलेश को अंकल खटकने लगे। amar singh
2012 के विधान सभा चुनाव में पार्टी की जीत के साथ बढ़ते कद के बीच अखिलेश मुख्यमंत्री की गद्दी पर सत्तानशीं हो गये। इससे पहले ही 2006 में अमर सिंह पार्टी से बाहर हो गये। लेकिन अमर तो अमर ठहरे, दांव चला और 2016 में उनकी दोबारा वापसी हो गयी। मुलायम के अलावा अमर सिंह की पार्टी में वापसी की राह हमवार करने में शिवपाल यादव की भूमिका सबसे अहम रही। पार्टी में घुसने के साथ ही अमर सिंह राज्यसभा पहुंचे। वे सरकार में भी दखल की कोशिश करने लगे। अमर ने अखिलेश की मर्जी के खिलाफ अपने खास अफसर दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनवा दिया। ये बात भी अखिलेश को नागवार गुजरने के लिये काफी थी। अमर की वापसी के साथ ही कुनबे में कलह शुरू हो चुकी थी।
इसके अलावा अमर सिंह से अखिलेश की अदावत के कुछ पुराने ज़ख्म भी हैं। जो मुलायम कुनबे की कैकेयी यानि साधना गुप्ता से जुड़े हैं। दरअस्ल 1982 में मुलायम की दोस्ती अपनी उम्र से 20 साल छोटी पहले से ही शादी शुदा साधना गुप्ता से हुयी। आगे चलकर मुलायम मुख्यमंत्री बने लेकिन साधना से उनकी प्रेम कहानी की किसी को भनक तक ना थी। आखिरकार 1991 में अखिलेश को साधना और उनके बेटे प्रतीक के बारे में पता चला।
2003 में अखिलेश की मां यानि मुलायम की धर्म पत्नी मालती देवी का निधन हो गया। जिसके बाद साधना जोर देने लगीं कि मुलायम उन्हें अपनी आधिकारिक पत्नी मान लें, लेकिन दबाव और खासकर अखिलेश यादव के विरोध के चलते मुलायम इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चाहते थे। सूत्र बताते हैं कि इसी बीच साधना ने 2006 में अमर सिंह से संपर्क कर आग्रह किया कि वह नेताजी से रिश्ते की बात सार्वजनिक करने के लिये मनायें। लिहाजा अमर सिंह के प्रयास के बाद 2007 में मुलायम ने सार्वजनिक तौर पर साधना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। amar singh
ये घटना अखिलेश की निगाह में अमर को विलेन बनाने के लिये काफ़ी थी। उसके बाद भी अखिलेश के विरोध को नजरअंदाज कर मुलायम ने अमर सिंह की मदद से ही आय से अधिक संपत्ति से संबंधित मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया जिसमें उन्होंने साधना को पत्नी और प्रतीक को बेटे के तौर पर स्वीकार किया। इस सबकी स्क्रिप्ट भी अमर सिंह ने ही लिखी थी। इस तरह से साधना की परिवार में एंट्री के लिए अखिलेश ने अमर सिंह को ही जिम्मेदार माना। ऐसे में अमर को खलनायक मान चुके अखिलेश नहीं चाहते कि अब उनके परिवार या पार्टी में अमर सिंह का कोई दखल रहे। कहते हैं ना कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है इसी तर्ज पर सीएम ना बन पाये शिवपाल को अमर का साथ मिल गया। इसने आग में घी का काम किया और अमर सिंह से अखिलेश की अदावत और गहरा गयी।
# amar singh